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छोटी-छोटी मगर मोटी बातें'
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें'
22.43 hrs. 3rd November, 2017
Himanshu Dhebar: हत्या तो उपरवाला
ही कराता है. मांसाहार लोग शाकाहारी प्राणी को ही अपनाते हैं खाने के लिए. शेर को
नहीं खाते. न खाये जाते हुए भी वे दुनिया से लु्प्त होने की स्थिति में रहते हैं.
22.20 hrs. 05-11-2017
My comment 2: छोटी-छोटी मगर मोटी
बातें के संदर्भ में बात की जाय तो यह है कि अगर आदमी उपर लिखित प्राणियों की तरह कच्चे
घासखाऊ बन जाये, तो कितना अच्छा हो जाएगा? खाना पकाने के लिए गेस की आवश्यकता नहीं रहेगी. सबसीडी की आवश्यकता नहीं रहेगी. कितना ईंधन बचेगा? गरम पानी के लिए शायद
चाहियेगा. मगर जानवर को थोड़ी गरम पानी चाहिये नाहने के लिए? नाहने की भी ज़रुरत
कहां की रही? मानसिक्ता अगर कल आज
और कल का न देखने हुए सिर्फ वक़्त दर वक़्त हरे पत्ते और घास खानेकी और पानी पीने की
तलाश कि लिए सीमित रहेगा तो आदमी कितना सुख भोगेगा?
और आतंकवाद तो कहीं का नहीं रहेगा. अड़ोस - पड़ोस में कोई आंतकी हमला हो भी
गया तो भी हम निर्दोष हो कर रोजमरा घास की तलाश में लगे रहेंगे. हाहाकार और वक़्त की बरबादी, जो आतंकवाद का अहम उद्देश्य
है, नहीं रहेगा तो आतंक ही नही रहेगा. लिखने का इस मौके के लिए धन्यवाद.
9.10 hrs, 06-11-2017
तात्पर्य यह है कि
जिसकी मांग है उस जाति, प्रजाति का कोई नुकसान हो, असंभव के श्रेणि में आता है.
जिसकी मांग कम हो गई हो, जैसे कि घोड़े और गधे की, उन की संख्या कितनी थी और कितनी है उसकी कोई
जांचपड़ताल हो. कम से कम सामने से तो नहीं के बराबर हो गई है. जो कि मनोरंजन के लिए भी विकटोरिया या कोई
टांगा चल रहा था वे भी कथाकथित पशु ‘मानव’ अधिकारिवालों ने बंद कर दिये हैं या बंद
करने कि ताक मैं हैं. यह वाकई अफसोसनाक बात है.
मुद्दे की बात यह है कि आदमी जीवन
को सिर्फ उपभोगने का ज़रिया समझता है. वह कि एक बलीदान का स्वरूप है यह स्वीकार
नहीं करता. आदमी हो या जानवर बलिदान
का रूप ही धारण करता है. जानवरों के लिए तो यह निःसंदेह वाली बात है. भोगविलासीता, कहीं शाम को घुमने चले जाना, कोई
सीनेमा देखना, घर आकर कोई दिलचश्प टीवी सीरियल देखना यह सब बात से तो वे 100 प्रतिशत वंचित है. लगभग उपर दिये जानवरों 100 प्रतिशत सिर्फ मानुष्य
जाति के सामने बलिदान स्वरूप ही है, न जाने किस रूप में. उसी में उनके कर्तव्य छूपे हैं.
ये देखते हुए आदमी खुद बलिदान के रूप में पेश आया है कि वह भी कुछ देने के
लिए ही आया है, वह अपना कुछ न समझे, जन्म, जीवन और मौत. यह सारी चीज़ ऊपरवाले की अमानत है. यह सारे उपरवाले का खेल
समझे. खुद के बहेलाने वाले पसंद या नापंसद से हावी न हो जाय न तो औरों को हावी
करें कारण कि भगवान सब जानता है. क्या ग़लत क्या सही वह बखुबी जानता है. दुनिया भर में उन्हीं की लीला है. यह सब जीवन का सार
समझें.
12.43 p.m.
09-11-2017
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