शनिवार, 6 अप्रैल 2024

भारतीय जाति की परिभाषा

The Times of India/jugglebandhi

Caste aside

March 29, 2024, 8:56 AM IST Jug Suraiya in Juggle-Bandhi, Edit Page, India, politics, TOI

पिछले अक्टूबर में, बिहार ने आज़ादी के बाद भारत की पहली जाति-आधारित जनगणना के नतीजे जारी किए, और इस जनवरी में आंध्र प्रदेश ने एक समान गतिविधि शुरू की, जिसमें  अधिकारी घर-घर जाकर लोगों से पूछ रहे थे कि वे किस जाति से हैं।

मुझे चिंता इस बात की है कि हरियाणा, जहां बन्नी और मैं रहते हैं, शायद ऐसा ही करेंगे और जाति सर्वेक्षण कराने का फैसला भी कर सकते हैं। यह पूछे जाने पर कि मैं किस जाति से हूं, हमारी तो अस्तित्व संबंधी एक पहेली खड़ी हो सकती है। क्योंकि मेरे या मनु के जीवन में, मुझे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं है कि मेरी जाति क्या है, अगर कोई है भी तो।

जाहिर तौर पर, जनगणना का उद्देश्य उन वंचित जातियों की पहचान करना है जो गैस सिलेंडर जैसी सरकारी मुफ्त सुविधाएं पाने के हकदार हैं। और जो जाहिर तौर पर कम दिखता है वह उद्देश्य है कि विभिन्न जातियों की पहचान भाजप सरकार के कथित अखंड हिंदुत्व वोट को विभाजित करने की एक विपक्षी रणनीति है, ऐसा कहा जाता है।


मेरी टिप्पणी - 

आपका लिखा हुआ है: "जो जाहिर तौर पर कम दिखता है वह है कि विभिन्न जातियों की पहचान भाजप सरकार के कथित अखंड हिंदुत्व वोट को विभाजित करने की एक विपक्षी रणनीति है।"

अब यह अधिक समझ में आ रहा है, और योग्य भी लग रहा है। किसी उलझे हुए विचार के तहत लोगों को एक साथ इकट्ठा करना और इस यहां की दुनिया के हिस्से को एक तरह से भारत-पाकिस्तान में विभाजित करना और उस राजनीति से शानदार जीत पाना, यह निश्चित रूप से बहुत अच्छी बात नहीं कहलाई जानी चाहिए।

जाति सिर्फ वह नहीं होनी चाहिए जो आपका जन्म कहता है। वह तो और भी बहुत मायने रख सकती है।  पहले तो उससे आधार कार्ड वाली पहेचान टकराती है जो उसको अलग और विशेष पहेचान बनाने में तुली हुई है. फिर उसके बाद उसे हालात, उम्र, ऊंचाई, वजन, शिक्षा, नौकरी, दोस्तों, विचारों या समय के विशेष क्षणों में मनोदशा आदि से अपनी जाति को विशेष पेहराव मिलता है. एक आपका पाठक का विचार उद्धृत करने लायक है:

एस एस: "...18 वर्ष और उससे अधिक आयु का जाति सर्वेक्षण .... जन्म से, शिक्षा से, प्रशिक्षित कौशल से, आदतों से, शब्दों, विचारों, कर्मों से, व्यवसाय, नौकरी कमाने की शैली से, जाति का पता लगाएगा। सपने, कभी समुद्र पार कर विदेशी भूमि का दौरा किया? शौक से,  खाना जो खाया उससे......

आपको लिया जाय तो आप गुडगांव के रहने वाले हैं।  गुड़गांव से संबंधित होना यह भी काफी  मायने रखता है। जो एक स्थान जो आपके स्थायी पते के रूप में मौजूद होगा। एक ऐसी जगह जिससे आप परिचित हैं, शायद आपने वहां अपने जीवन का एक लंबा समय बिताया है। इसके बाहर, भ्रमण के दौरान यदि आपको गुड़गांव का कोई व्यक्ति मिल जाए, तो आप उसके बारे में और अधिक जानने के लिए उसके पास जाने को उत्सुक हों सकते हैं। यह भी आपकी जातिगत खींचतान में से एक है. इस जगह के बारे में बहुत कुछ  गहराई से अपना लेया हुआ होने से आपको इसका नया नाम गुरुग्राम को अपनाना जरा मुश्किल होता हुआ नजर आ रहा होगा, शायद।

यह प्रवृत्ति घटनाओं का स्वाभाविक झुकाव  समझें। आपके वर्गीकरण का एक हिस्सा समझें. सबसे पहले आपकी पहचान आपके फिंगरप्रिंट, उंगली के ठस्से से होती है. वह अपने आप में एक जाति है, एक दायरा है. फिर आपको एक व्यक्ति के रूप में परिभाषित करने के लिए आप अपनी जगह का झंडा लहराते हैं. अपने कसबे का झंडा, फिर एक गांव का, यानि की आपका गुड़गांव समझो.  फिर आगे चलते हरियाणा का दायरा टकराता है. और कहा जाय तो आगे की सीमा है उत्तर भारत, भारत, दक्षीण एशीया, एशीया... और आखीर में जो सारे जहां को संमलीत कराता है दिनिया, पृथवी, जिस पर एक ईश्वर पूर्ण स्वामित्व रखता है।

यहां कहने वाली बात यह है कि भारत नामक दायरा, सर्कल, वृत्त, या घेरा  ने सारी चीजों को उथल-पुथल कर दिया है। इसने अप्राकृतिक रूपरेखाओं को बढ़ावा दिया है। इसने अपने को पराया, पराया को अपना करने का वायदा कर रखा है, जो पूरी तरह से मानव निर्मित उलझे हुए विचारों पर आधारित है। यानी, भारत नामक घेरे के सामने आपकी भीतरी पहचान को जाने पूरी तरह से समर्पण कराने का भारतीय स्वतंत्रता प्रेमियों ने वायदा कर रखा हो। समझो एक पंजाबी की अप्रतीम पहचान को एक भारत या पाकिस्तान से तबाही सामने रखी गई हो!

खैर, वैसे भी, भारत का घेरा, चक्र किसने बनाया?  एक तो थे अंग्रेज; और उससे पहले थे फ़ारसी और उस के पहले थे संस्कृत बोलने वाले। वे जो थे वे उसके प्रति सच्चे थे, प्रामाणिक थे। अंग्रेज, अंग्रेज थे.  फारसी, फारसी थे, और शायद संस्कृत बोलने वाले वाकई संस्कृत भाषी थे.  लेकिन यह बात  इंडियन, या हिंदुस्तानियों या भारतीओं पर लागू नहीं किया जा सकता है। परिभाषा के अनुसार भारतीय एक समझौतावादी भ्रष्ट समुदाय हैं, चाहे वह गांधी हों या नेहरू या कोई अन्य भारतीय।  वह अपने खुद से ज़्यादा किसी और के बहकावे में रहना  पसंद करते हैं.

धर्मों की साजिश ने चीजों को और भी बदतर बना दिया है। मैं कहता हूं,  कि क्या अपने अपने विशेष दायरों को अपना जीवन जी ने का इस बनेबनाया भारत में कभी मौका मिल सकेगा? अभी भी विशेष दायरों में रहने वालों निर्दोषों को भारतीयों के शिकंजे से कभी राहत मिलेगी?

6:03 p.m., 05-04-2024



मेरी टिप्पणी - 2: -

उपरोक्त सब कुछ बेख़ुदी किस्म से भारत यानि क्या मुसीबत है, समझा देता है.  भारतीय कहलाने वाली जाति नेजिससे गांधीजी भी संबंधित थेउन्हें अपनी भारतीय जाति ने अपने जन्मस्थान पोरबंदर की ओर नहीं खींचा, अपने वर्तुलों की अधिकांश आंतरिक क्षेत्रों की ओर नहीं खींचा, बल्कि खींचा उन्हें संपूर्ण ब्रिटिश विरासत पर अपनी पकड़ फैलाने की चाह ने। ऐसा नहीं हो तो इंडियन-भारतीय बनने का क्या मतलब होताइस लिए थोड़े न है कि भारतीय बने हैं और अपने गांव चले जाएंअंग्रेजों से पढ़लिखकर बेरिस्टर बने, तो क्या इस लिए कि दक्षिण अफ्रिका न जाया जाय, और उससे पैसे न कमाया जाय, और वापस आते ही अपने गांव का रुख थामा जाए! यानीकि सही रूप से भारतीय न बना रहा जाय

यही तो भारतीयों को परिभाषित करता है, भारतीयों की जाति को परिभाषित करता है।  साथ साथ में गैर-भारतीयों का भी परिभाषा कर लिया जाय, यानीकि जिन्हें अपनी भाषा से ही ताआलुक हो, अपने ही सही वतन से ही वास्ता हो। 

यदि अंग्रेजों ने सभी आकांक्षी भारतीय जातियों को दरकिनार कर दिया होता, सभी रियासतों और जो भी क्षेत्रों जो उनके सीधा नियंत्रण में थेउनका अपना अपना हक दिला दिया होतातो क्या नतीजा निकला होतागांधी-नेहरू जैसे भारतीयों अपने भारत को गवाते वह तो निश्चीत था, पर एक ज़बरदस्त फाईलें वाली बात, क्या लोगों की हताहत हुई होती जो हुईजल्दबाजी में किये गये  हत्याएं और निहायती अफसोजनक विस्थापन क्या हो सके होते?   लेकिन किसी के मन में यह बात नहीं आती। खैर भारतीयों के मन में यह बात कतई न आ सकती,  उनका अस्तित्व जो दाव पर लग जाता है इसमें। 

हम सभी अपने महान भारत की आज़ादी का जश्न मनाते हैंकहीए कि अमृत महोत्सव तक का जश्न मनाया हैं, लेकिन हम इस समझ के परे हैं कि यह सब  निर्दोष,  असम्बंधित, यानि 'गैर-भारतीयों' के बहते खून पर खड़े रह कर भारतीय झंडा लहराया गया था।

 यह सब नतीजे के रूप में होते हुए गांधीजी को नींद कैसे आई होगीउनकी कुछ  तरफदारी करते हुए वे शायद पूरी तरह से –  इंडियन भारतीय नहीं बन पाए थे।  शायद वे जिंदा होते तो आज इस हमारी दुनिया में कुछ न कुछ सही रास्ता ले कर दिया होता.  भारत माता की जय का नारा जरा कमज़ोर करवा कर सही रास्ता पकडवाया होता।

खैर, अंग्रेजों से तो आज़ादी मिलीपर अंग्रेजों के गुलामों से कभी रुखसत मिल पाएंगी, यह बडा प्रश्न सामने खडा है. गुलामों अपनी गुलामी वाली जाति को कैसे रुखसत दे सकतें हैं?

अरे,  उन गुलामों पर ही तो  दारोमदार है अंग्रेज से पाये हुए देश को चलाना.  हम रात दीन एक करके अपनो में से ही और भारतीयों को बना रहे हैं क्योंकि अंग्रेजों से पाई हुई लूट चलती रहे, बरकरार रहे.

अंग्रेज खुद अपने गांव चले गये।  मालिक यह कर सकता हैगुलामों को ऐसा विकल्प कहां?  उनका गांव सारा अंग्रेज निर्मित भारत जो ठहरा!  भारतीयों की परिभाषा है, न घर के न घाट के.

  11.56 सांय, 07-04-2024


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