सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

अभिन्न अंग, कहां तक सही


सरिता प्रवाह / संपादकीय
मोदीकश्मीरपाकिस्तान
3 September 2016

मेरा मंतव्य : गांव के चौराहा पर गाय का झुंड पाया जाता है आज की संकल्पना को देखते हुए. अपने हाल पर छोड़े हुए और आज़ाद. असमंजस सी कि  इस आज़ादी किस काम की है.  गाय को आज़ादी गवारा हो न हो एक चीज़ डट सी है कि काश्मीर के जनसमुदाय के लिए रास्ते बंधे हूए है।  जो भारत के मान्याता प्राप्त के विरुद्ध जायेगा उसकी खेर नहीं, साथ में ही रहेने में फायदा ही फायदा, जिस के बारे में आप ने भी ज़िकर किया है.  लेकिन वे भेड़ बकरी या गाय है कि आपने जो ठीक समझा मानलें?  आज़ादी की कल्पना दिल ओ दिमाग में होती है.  आदमी मात्र में होनी चाहिए. काश्मीर के हो या कोई प्रांत या कोई गलीकुचे का कोई भी आदमी हो. इस कल्पना को तो़ड़ मरोड़ न करते, पुरे मानव अधीकार को ख्याल में रखते हुए पेश आते, तो आप सीने फाड़ कर खडे गुज़रते कि हमने कोई लोकतांत्रिक पहेलु का उलंघन नहीं किया है.  अभी तो खेर हम तो दादागिरी पर उतर आये हैं, चाहे हम यह बात स्वीकृत करे या ना करे, काश्मीर समुदाय के लिए तो यह बात साफ है.  कुछ भी उन से बातचित शुरु करने से पहले, हम यह ललकारते है कि काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. आप ने भी यह वाक्य आखिर आखिर में डाल कर अपना रंगरूप दिखा ही दिया है. 
उस के सामने हम किसी भी हालत में लाहोर और कराची को अपना नहीं नहीं समझना चाहते. हमारे लिए वह दुश्मन शहर ठहरे लेकिन क्या काश्मीरी मुसलमान को भी यह बात स्वीकारनी चाहिए?  क्या उन के लिए पाकिस्तान दुशमन देश बन सकता हैं?  उन के सिद्धांत के हिसाब से कतई नहीं. भारत उन के लिए दुशमन देश बना हुआ है. भारत जिसमें लाहोर, कराची न हो, उस भारत से काश्मीर का बने रहना सिर्फ अपनी भारतिय फौज की ही बलबुते पर है वह जगजाहिर है. 
    इन दिनों की रोचक बात तो यह है कि इसी संदर्भ में पाकिस्तान आतंक फैला रखा है सीधे फौज पर जिस का असर काश्मीर में सिमीत न रहते हुए सारे देश, भारत देश को हडबड़ा देने में कामयाद रहा है. सुद्ध भारतियों के आपस में तनाव सा भर गया है जिस में हर पाकिस्तानी नागरीक को फौज पर बना आतंक को जिम्मेदार ठहराये जाने पर बहस हो रही है. अगर समझ का दायरा शुरू होना है तो  या तो गरीब काश्मीर को रीहा करो, या तो सारे भारत महाद्विप की संचरना पर फेर विचार किया जाय.  काश्मीरी मुसलमान को आप जी भर के सता लिया, फौज को तो आप कितना दबाव में रखे जाएंगे इस बात 100 - 200 सौ साल तक चल सकता है, जिसका आपने जिकर किया है वह तो काफी लंबा अनुमान साबीत हो सकता है.
    कोई कोई को छोड़ कर, मानो सलमान खान, ओम पुरी वगैरे को छोड़ कर,  पाकिस्तानी कलाकार के लिए नफरत, भारत में जाने कूटकूट कर भरा है.  चाहे ऊरी की घटना होती या न होती, छूपी हुई इस द्वेश की भावना जाने बाहर सी आ गई हो. पाकिस्तान के लिए  नफरत नेसर्गिक तौर पर कूटकूट कर भरा है तो समझ ही लेना चाहिए कि काश्मीरी मुसलमान के लिए कोई खास प्यार होना संभव नहीं, साथ साथ में बाकी हिन्दुस्तान अल्पसंख्य के लिए भी यही हालत होगी. हिन्दुस्तान पाकिस्तान और बीच में एक लकीर कोई गल्ती थी यह मानने वाले नहीं के बराबर होंगे.
     जैसे आप ने लिखा हैः अफसोस यह है कि हमारा समाज धर्मजातिउपजातिभाषा में इतना जकड़ा है कि कुछ खास को आसानी से अपनाता नहीं है. इतने दिन चलते हुए नफतरत की दुनिया को छोड़के सारी दुनिया के लोगों को अपनाने का धर्म समझते, कि आखिर सब का मालिक एक है, तो फिर हम न सिर्फ काश्मीर के लिए लायक बनते, और कई देश समुदाय को अपने में जोड़ने के लिए लायक बनते. भारत माता की जय के नारे से कुछ संकिर्ण वातावर्ण बनता है जिस के उपर से उबरना जरूरी है इस की यह सब सीख है. इस संकिर्ण वातावरण अपनो को गैर और गैर को अपने बनाता है. काश्मीरी पंडित की हालत सुधारनी है तो वास्तविक नैसर्गीक वातावरण को लाना होगा.  अनैसर्गीक आदर्शवादी भारतमाता की जय वाला वातावरण को पीछे धकेलने से कुछ उम्मीद जताई जा सकती है.       

11.00 pm;  08-10-2016;  सरीता द्वारा स्वीकृत

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