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धार्मिक आतंकवाद से परिवारों पर त्रासदी
By जगदीश पंवार | 14 September
2016 Share on Google+
आज हर देश पर धर्म का ठप्पा है. एक भी देश निधर्मी नहीं है. अगर भारत
निधर्मी होता तो क्या 1947 में विभाजन होता? लाखों लोगों का कत्लेआम होता? परिवार बिखरते? 1984 का सिख दंगा होता? परिवार टूटते? जम्मूकश्मीर में लोग मारे जाते? कश्मीरी पंडितों के परिवार
पलायन का दर्द भोगते? इस के अलावा क्या इराक, अफगानिस्तान, सीरिया, मिस्र, सूडान जैसे देश बरबाद होते?
लाखों शरणार्थी
परिवार इधरउधर भटकते?
मेरा मंतव्यः आखीर आखीर में आपने मुद्दे की बात कही. अगर युरोप निधर्म
होता तो इज़राईल बनता? ढेर सारी परेशानियां जो निर्दोष अरब देशों
पर लादी गई, वह सब धर्म के नाम पर हुआ, उस के लिए कोई युरोपियन या अमेरिकन
अपने आपको दोषित नहीं समझता.
आपने यह पूछा – ‘अगर भारत निधर्मी
होता तो क्या 1947 में विभाजन होता?’ ऐसा भी पूछा जाय कि अगर धर्म
के नाम पर भारत ही न होता, तो धर्म के नाम पर विभाजन भी न होता. और धर्म उत्तेजीत भारत में इस के लिए कोई
अपराधी भावना ले कर नहीं बैठा है, बल्कि लोक बहुत खुश है जो हुआ उस पर. हमने जो
सीना फाड़ कर एक धर्म के नाम पर देश बनाया है तो इसी नाम पर कि पराये धर्मवाले
अपने अपने रास्ते नाप लें और चाहे तो पाकिस्तान या कहीं और चले जाय.
प्रश्न ये पड़ता है कि हिंदु धर्म और औरों के धर्म में क्या फरक रह गया है? जैसे के औरों के
धर्मों में धर्म के नाम पर एकता लादी जाती है वही चीज़ हिंदु धर्मे में भी हो, इसका
मनसूबा किसने बनाया? कह सकतें हैं कि
नेहरू ने देश को ललचाई आंखो से देखा. उन को अंग्रेज तले होने वाले सारा भूस्थल
चाहिए था और शेष दुनिया को बताना था कि हम भी कुछ अंग्रज बने हुए हैं. लेकिन जैसी
कि आम समझ है, अखंड कर्ताधर्ता माहात्मा गाधी रहे. देश की जनता को, हिंदु जनता को भारतवर्ष की
पटरी पर चढ़ाने में किस का अहम योगदान रहा?
और एक तरफ भारतवर्ष की गाड़ी चलेगी तो किस अंदाज से सोचा जाए कि इसके विरोध में और गाड़ी न चले? मुसलमानों की तादाद अच्छी खासी रही
है. अगर ख्रिस्ती लोग भी मन में ठाम लेते तो वे भी अपनी विषेश गाड़ी को चलती
करतें.
याहां पर आक्षेपार्थ चीज़ यह है कहां तक हिंदु धर्म के नाम पर एकता क्षम्य
समझा जाय? अगर जातीभेद की
अवहेलना करनी है तो अपने आप की हिंदु धर्म की अवहेलना है. अगर ऐसा समझा जाय कि एक
लाहोरी बनना क्षम्य नहीं है जितना कि हिंदु बनना, और उसके आधारपर उस को, अपनी पिढ़िजात माहोल, कस्बों से उखेड़ा जाय, यह
कौन सा हिंदु धर्म के तर्क का हिस्सा है? इस के
बारे में उन वक़्त के गांधी और नेहरू को पूछा जाना चाहिए, या आज के वक़्त के सारे
बहुजनी देशप्रेमीयों को पूछा जाय.
उस वक़्त को तो किसीने लगाम नहीं लगाई कि विभाजन हो तो नैसर्गीक जातीभेद के
आधार पर, धर्मभेद पर नहीं. अनेकता में एकता का मूल सुत्र रखा जाय. लेकिन आज कौन है
कि सारे मामले में अफसोस जताये और रास्ते को सही मोड़ देने में अपना कर्तव्य समझे?
12.13 दुपहर, 31-03-2017 ; 01-04-2017 के शाम 5.30 को सरिता को भेजा गया.
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