रविवार, 27 मई 2018

अनुपम खेर के तीखे सवाल

अभिनेता अनुपम खेर के तीखे सवाल सुनकर, सुप्रीम कोर्ट के "जजों" का माथा ठनका--.
11 मई से, "तीन तलाक" के "मुद्दे" की, "सुनवाई" के लिए, "5 जज़ों की टीम बैठी थीं".......!
सुनवाई के "पहले ही दिन" "कोर्ट" नें कहा था, कि :----

अगर, "तीन तलाक" का "मामला" इस्लाम धर्म" का हुआ .....तो, उसमें हम दखल नही देंगे....
इसपर बॉलीवुड "अभिनेता अनुपम खेर" नें "तीखे शब्दों का इस्तेमाल" करते हुए, कहा :--
ठीक है, माई लॉर्ड, अगर आप- "धर्म" के मामले में "दखल" नही देना चाहते, तो :--
जलीकट्टू,
दही हांड़ी,
गो हत्या,
राम मंदिर
जैसे :--- कई "हिंदुओ" के "मामले" हैं, जिसमें "आप" "बेझिझक दखल देते हैं".....।
क्या - "हिंदू धर्म" आपको "धर्म नही लगता" ?????
या फिर, "आप" मुसलमानों" की "धमकियों से डरते हैं"?????
 मेरी टिप्पणीः कानून बनाना जजों के हाथ में नहीं है. उन्को बनाये हुए कानून के राह पर चलना होता है. हालांकी हो सकता है कि जजों को अपने दिमाग इस्तेमाल करने की गुंजाईश हो. तो जिसके बारे में वे जानते हैं और उसे अपना समजते हैं उसी में ही अपने इज़ारे-खयाल पेश करें तो उस में गलत क्या है?  हां, ऐसा कानून लाया जा सकता है कि वे हिंदूओं की भी धमकियों से वे डरे और कुछ न बोले.

अगर आप "कुरान" में लिखे होनें से,"तीन तलाक" को मानते हैं ....
..तो :---
"पुराण" में लिखे, "राम के अयोध्या में पैदा होनें को" क्यों नही मानते????
हमें भी बताइए, यह सिर्फ मैं, नही ......"पूरा देश" जानना" चाहता है।!!
मेरी टिप्पणीः तलाक को मानना और न मानना गैर की बात है, राम के अयोध्या में पैदा होनें के बारे में अपना विचार रखने  में कोन सी आपत्ति हुई. हो सकता है कि क्रिकेट में अंपायर निस्पक्ष होते हैं वैसे ही जजों को अपना पेशा कोई और देश में जा कर रचना होगा.


"गाय का मांस खाना" या ,"ना खाना" उनकी" मर्जी" पर छोङ देना चाहिये ...
लेकिन, "सुअर" का "मांस" वो नही खायेगें ....
क्योंकि, ये "उनके धर्म के खिलाफ" है ????
मेरी टिप्पणीः उनके धर्म के खिलाफ होते उए वे सुअर का मांस न खाय तो आपको क्या तकलीफ है? यह खाओ, वह खाओ, कोई किसी को रोक नहीं सकना चाहिए. अगर कानूनन तोर पर रोका जा सकता है तो वह कानून बदलना चाहिए.


"शनि शिंगनापुर मंदिर" में, "महिलाओं" को, "प्रवेश ना देना महिलाओं पर अत्याचार है
 ".....जबकि, "हाजी अली दरगाह" में "महिलाओं" को "प्रवेश देना,
 या ना देना, "उनके धर्म का आंतरिक मामला" है ???
मेरी टिप्पणीः हाजी अली महिलाओं को मना करे, तो बिलकूल उनकी मर्जी है. अगर आप मुसलमान बनना चाहते हो और इसी बात के लिए रुके हुए हो, तो रूके रहीए.


"पर्दा प्रथा" एक "सामाजिक बुराई" है .....
लेकिन, "बुर्का उनके "धर्म का हिस्सा" है ????
मेरी टिप्पणीः पर्दा प्रथा सामाजिक बुराई, ये कहां की बात हैयहां पर भी आप मुसलमान बनाना चाहते हो, लेकिन बुर्खें के वजह से रुके हुए हो तो रूके रहीए.

"जल्लीकट्टू" में, "जानवरों पर अत्याचार" होता है....
लेकिन, "बकरीद" की "कुर्बानी", "इस्लाम की शान"है ????
मेरी टिप्पणीः जल्लीकट्टू में आदमी नासमज जानवरों के साथ खेलता है और आनंद लेता है, हो सकता है कि कोई जानवरोंने जजों के सामने जाकर शिकायत की हो. कुर्बानी वह कुर्बानी है. सीधी सी बात. कुछ जानवर को इसी का दर्जा दिया गया है. इस लेए तो उस जानवरों की मांग मिटती नहीं. जल्लीकट्टू में भी जानवरों को जो हेसीयत मिलती है वह नहीं मिलेगी मानलो कल उस खेल को बंद किया जाय. नही तो बकरी को न तो सांड को बेदखल करने चाहिये.

"दही हांडी" एक "खतरनाक खेल" है ....
जबकि,
इमाम हुसैन: की याद में, "तलवारबाजी" उनके "धर्म का मामला" है ????
मेरी टिप्पणीः दहीं हाडी एक खतरनाक खेल है. बिलकूल हो सकता है. अगर हो सके तो उसे मत देखें. स्वीकार है, उसमें दखल नहीं देनी चाहिए.  तलवारबाजी में भी जो होना है उसे होने देना चाहिये. 

"शिवजी पर दूध चढाना"... "दूध की बर्बादी" है ....
लेकिन मजारों" पर "चादर चढाने से मन्नतें पूरी होती है" ????
मेरी टिप्पणीः दूध नाले में चले जाता है. चादर भी नाले में जाती हैंआपला मामला गडबड है, यानी के अनुपम खेर का मामला गडबड है.  शायद काशमिरी पंडीत होने के नाते, जो अपने ही देश से बेदखल है, अफसोसनाक बात से दिमाग का पेच कुछ ज़्यादा ही ढीला हो जाना ये मुमकिन है.

"हम दो हमारे दो"... हमारा "परिवार नियोजन" है ....
लेकिन, उनका- "कीङे-मकौङों" की तरह, "बच्चे पैदा करना अल्लाह की नियामत" है ???
मेरी टिप्पणीः कीडे मंकौडे की तरह अल्लाह की तो क्या भगवान की भी नियामत है.  समय का ताकाज़ा है कि बात संभाली जाय.

"भारत तेरे टुकङे होगें", ये कहना -"अभिव्यक्ति" की "आजादी" है ...
और इस बात से "देश" को कोई "खतरा" नही है....
और "वंदे मातरम" कहने से, "इस्लाम खतरे" में, आ जाता है ????
मेरी टिप्पणीः मेरा विचार तो आप जानते हैं.  भारत एक देश होना ही नही चाहिए.  उपरवाले ने इतने भाषाएं क्यों बक्शी  है?  आप उपरवाले की कितनी अवहेलना कराना चाहेंगे?  नही तो पाकिस्तान केलिए जगाह है, न तो भारत केलिए.  अगर हिंदुस्तान-पाकिस्तान न होता काश्मिरी पंडीत को अपने देश छोड़ना पड़ता?  ये सोचिए!


सैनिकों पर "पत्थर" फैंकने वाले, "भटके हुऐ नौजवान" है .
और अपने बचाव में, "एक्शन" लेने वाले "सैनिक" "मानवाधिकारों के दुश्मन" हैं????
 मेरी टिप्पणीः पत्थर फैंकने वाले में मानवता का रूप ढुंढना ज़रूरी है. भटके हुए नौजवान के रूप इंन्हें देखना क्यों नहीं चाहिए  सैनिक आज्ञाकारी कथ-पुतले हैं.  सैनिक के पीछे खड़े वे मानवधिकारों के दुश्मन कहे जा सकते हैं, सैनिक नहीं.

एक दरगाह पर विस्फोट से "हिन्दु आंतकवाद" शब्द गढ दिया गया
और जो "रोजाना" जगह जगह बम फोङतें है,
उन "आंतकवादियों" का कोई "धर्म" ही नही है ????
मेरी टिप्पणीः   हिंन्दु के हितमें रखकर आतंक फैलाता है उसको हिन्दु आतंकवाद कहने में क्या आपत्ति है?  शराबी को शराबी कहने में क्या आपत्ति है? अगर कोई धर्मका ताअलुक न रखते हुए आंतक फैलाया जाय, तो उन आतंकवादियों का कोई धर्म न होने की भी बात कह सकते हैं.


क्या हाल कर दिया है, "दलाल मीडिया" और "सेकुलर जजों" ने, हमारे "देश" का, .......
मेरी टिप्पणीः   सेकुलर जजों होना बुरा है, वह आप से सीखें.


यदि समाज से असमानता दूर करनी हो
तो समान भाव से देखना चाहिये ।
मेरी टिप्पणीः भारत उपखंड विविधता से भरा हुआ है. असमानता का होना वह विविद्धता का अंश है.


जय हिन्द जय भारत
धन्यवाद व्यक्त करता हुँ उस महान व्यक्ति का जिसने संदेश बनाया
इसे जन जन तक फैलाये
मेरी टिप्पणीः यह सब हिंदुस्तान-पाकिस्तान बरकरार रखने के लिए लिखा गया है.  एक तरफ हिंदुस्तान मज़बूत बना रहे, और पाकिस्तान आपना अस्तित्व पर कोई अफसोस न रखें इस लिए.  इसमें कोई बात सुलजने की नहीं कही गई.
पाकिस्तान असल में हिंदुस्तान के हर गली-कुचे में होना चाहिए, न कि एक अलग सा देश बनाया जाय. पहले से विविधता अपनाते तो एक तरफ भारत और दुसरी तरफ पाकिस्तान न होता.  

अनुपम खेर मेरे लिये एक नापसंद के तोर पर काश्मिरी पंडिट पेश आएं हैं.  मेरा उन्के खिलाफ पूर्वग्रह रहता है.


एच. एम. डी.  25-05-2018


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