शनिवार, 2 जून 2018

भारतीय संविधान की आकृतियां


कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भारत के संविधान की मूल प्रति भी दिखाई. उन्हों ने कहा "यह है मौलिक सविंधान. इसमें सारे नेहरुजी को लेके, राजेद्र प्रसादजी को लेके हस्ताक्षर हैं!" इसमें उन्होंने भगवान राम की तस्वीर दिखाई जिसमें वो सीता और लक्ष्मण के साथ है. साथ ही उन्होंने भगवान कृष्ण की तस्वीर भी दिखाई जिसमें वो अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हैं. उन्हों ने और कहा,  "इस में नटराज भी है, इस में आपके गुरु गोबिंद सिंह भी है.  अकबर है, औरंगज़ेब नहीं है. महात्मा गांधी भी हैं, महावीर भी हैं, बुद्ध भी हैं. यह है भारत की विरासत. अगर इस सविंधान आज बनेगा और इस तसवीरों को सविंधान में शामिल करने की कोशिश की जाएगी तो क्या कहा जाएगा? भारत भगवा हो रहा है, कम्यूनल हो रहा है." नीचे है रविशंकर प्रसाद का वीडियो..





मेरी टिप्पणीः  यही तो सब तमाशा है. देश बना वह धर्म के नाम पर बना. अगर शुरुसे धर्मनिरपेक्ष होते तो क्या पाकिस्तान बनता? शायद गल्तियां नजर आने लगी इसिलेए धर्म निरपेक्षता का गाभा पहेनाया जाने लगा.  पहले तो सारे हिन्दुत्ववादी कांग्रेस पार्टी से ही जुड़े हुए थे. बात ढीली पड़ती हुई देखकर ही तो आज भाजप खड़ी है.  उनको कोई अफसोस नहीं है कि पाकिस्तान बना.  यानी के हिंदू और मुसलमान के बीच जो लकीर बनी है. उस लकीर को दूर करनी होगी तो भाजप जहां तक है कोई उम्मीद नहीं की जा सकती. और औरंगज़ेब को ना गवारा रखा है, यह भी बताता है कि उस वक्त का माहोल कैसा था.  औरंगज़ेब जैसा लंबे अर्से का घोड़ा शायद नहीं हुआ होगा.  50 वर्ष राज करना और भी काफी बड़ा क्षेत्रफल पर. यह कोई छोटी बात नहीं थी. आपके लाडले हो या ना हो, इतिहास से उसे कैसे बेदखल कर सकते हैं?
30-05-2018

नन्दलाल बोस की आकृतियां इस बात दोहराती है कि जो संविधान बना वह भारत को सामने रखकर बना. भारत  को प्रेणना सोत्र समझकर बना. भारत की संस्कृति की विरासत पाने की नाम पर किया. उस विरासत को संभालने के नाम पर किया. 
प्रश्न यह है कि हम कौन है कि इस विरासत को संभालने का ठेका ले रखा हैहम कौन कि उठ कर हमने यह काम संभाला? हम कौन थे जब कभी भारतवर्ष हम पर हावी था जो आज हम उसको हमारे नियंत्रण में लाने का करतव्य समझ बैठे हैं. और तो और उसे सविधान में सिमीत कर के उसका अपमान तो नहीं कर रहे हैं? और फिलहाल मौजुद आंतरराष्ट्रिय सीमा में बांधकर कर उसे सिमीत रखने का अधिकार किसने दिया?
असल बात यह है कि हम नासमझ इंसान के नाम पर है. पौराणिक काल में हम अपनी अपनी जगाह पर थे और अपने उपर राजकर्ताओं अपनी जगह पर. संस्कृत बोलने वाले का आधिपत्य रहा तभी हमने उनको नतमस्तक किया. फारसी बालने वाले का आधिपत्य हुआ, उसको हमने सलाम किया. विधिलिखित. अंग्रेजों की जीत तो सर्वोच निकली. मिटाओ न मिटेगी.
हम कितनी संस्कृत भाषा जानते है कि भारतवर्ष को अपनी जायदाद समझे? उसे अपना समझे? हम अपना छोड़कर काल्पनिक दुनिया में रहना क्यों पसंद कर बैठे हैं. अपना समझने केलिए उपरवाले ने क्या कुछ नहीं दिया? श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं के आप अपने आप में सर्वश्रेष्ठ बनो. मैंने आपको बनाया है. जैसे हो उसीमें श्रेष्ठता लाओ. और ख़ास बात वह सब मेरे लिए लाओ.  
मेरी आकृतियां बनाकर संविधान बनाना और भारतवर्ष को अपने हक का समझना और उसी नाम पर लोगों पर अत्याचार पेश करना कि भारतवर्ष ही हमारा ध्येय होना चाहिए, यह कहांकी गुलामी, संकल्पना की गुलामी पेश खिदमत की है?  
गुलाम गुलामी बगैर नहीं रह सकता.  चाहे वह संस्कृत भाषा की हो, फारसी की हो, या अभी अंग्रेजी की हो. पर यह सब करके कहां तक श्रीकृष्ण को खुश करने में सफल हो सकते हो? एक दिन तो जवाब देनाही होना चाहिये.
01-06-2018    

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