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पाकिस्तान
के आतंकी ठिकानों का सफाया करें - विजय दर्डा,
18-02-2019, लोकमत टाइम्स
भारत को बना-बनाया देश कैसे
कहा जाय? जो एक देश जिस पर एक भाषी अंग्रेजों
का राज्य रहा, जिस का आखिरकार का आकार उन्ही की देन रही, वो बना-बनाया देश को हम
भिन्न भिन्न लोगों ने अपने हाथ में लिया है और उसे बरकरार रखना चाहा है और चाहते
हैं कि कभी किसी रोज़ भिन्न भिन्न न होते हुए हम सब देश के लिए पूरी तरह से न्यौछावर
हो जायें, और अपनी अपनी भाषाएं न रखते हुए और सिर्फ अंग्रजी को अपनी मातृभाषा बना
दें यानी कि सही में अपने ही देश में अपने ही देश केलिए, जहां कहीं भी हो, कश्मीर
या कन्याकुमारी, न्यौछावर होने की बात हम भरोसे
से कह सकें, समझ सकें।
यह तो काफ़ी लम्बा सफर
रहेगा. लेकिन आज के दिन यह कहना उचीत होगा कि यह एक कश्मीर का प्रश्न है, एक
समस्या है, और जहां तक वहां के लोग अपनी
भाषा से दूर होकर एक अमेरीका जैसे, जिसको हम आदर्ष माने, हर कोई अंग्रेजी बोलने न
लग जाए तब तक वह गैर देश है और वहां का जनमत से ही ठहरा जा सकता है कि असल में इस पुलवामा
घटना में कोन न्यौछावर हुआ अपने कीस देश के लिए.
प्रश्न यह है कि हम कितने
दिन तक अपने अस्तित्व के लिए अंग्रेज को श्रेय देने के लिए मजबूर रहेंगे? साल दर साल कब तक हम 15 औगस्त वाला स्वतंत्रता दिन के जश्न
मनाते रहेंगे?
यह क्या हमने बनाये रखा है कि बांगलादेश के तरह अंग्रेज को ज़रा भूल कर सही
मायने में आजादी पर उतर आना कतई सम्भव न होने पर ही आमादा रहेंगे? हमने क्या बनाए रखा है कि हम अंग्रजी की गुलामी की याद
दिलाने वाला यह भारत सतत हमारे साथ घुमेगा? कश्मीर समझिये बांगलादेश के ही तरह अंग्रेजों
के हिस्से में श्रेय का अंक कम करना चाहते हो तो कोन नैतिक रूप से सही है, भारत या
कश्मीर?
और यह कैसी बात रही है कि
कश्मीर जिस की भाषा तक समझते नहीं उसको हम मातृभूमी कहते हैं और जिस की भाषा समझते
हैं, जिसका आधा हिस्सा भारत में है और आधा पाकिस्तान में, यानी कि पंजाब का मिसाल लीजिए, उसको हम
दुशमन प्रांत समझते हैं और उस पर बिना जिजक बोम्ब फेंक कर भी आते हैं? और भारत कश्मीर तक
ही सीमीत क्यों रहना चाहीए, जबकि भगवान के सामने सारी दुनिया भारत है?
अगर कश्मीर अपनी राय रखे, और
कल गुजरात अपनी राय रखना चाहे तो वहां गल्ती क्या हो सकती है? इसी को तो बोलते हैं लोकतंत्र. हर प्रांत की अपनी अपनी भाषा, अपना अपना विचार,
अगर ना हो तो विषेश क्या चीज़ रह जाती है बल्कि हम रोज रानीसहिबा से बात करके
दिलासा दिलाएं की आपका अंग्रज साम्राज्य
अभी भी है बरकरार.
खैर, एक विचार है - अगर मोबाईल के कोई ऐप के जरिए हर महिने जनमत लिआ जाय जो आम
चुनाव की भी ज़रूरत न छोड़े, जिससे खुले
आम लोगों कि राय जानी जाय, जहां आतंकी विचार का कोई रास्ता ना बचे, यही तो होगा इस
से उलझने की राह. कश्मीर की अपनी राय हर महिने बयान करें कि इस
महिने कितने प्रतिशत पाकिस्तान से विलीन होने की ख्वाइश रखते हैं, कितने प्रतिशत तिनो
(भारत, पाकिस्तान और कश्मीर) को ही साथ
साथ होना चाहते हैं, कितने लोगों को कश्मीर को स्वत्झरलेंड बनाना है कि न वह यहां के हो न वहां के हो और कोई गैर कश्मीरी फौजी जवान ही ना रह जाय वहां मरने के लिए?
12.53 p. m. 19-03-19; संपादित : 4.45 p. m. 20-03-2019
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