रविवार, 21 नवंबर 2021

गुलामी के नक़्शे कदम पर चलना

 वॉट्सएप की देन....

एक अमेरिकी हिंदुस्तान में घूमकर  जब वापस अमेरिका पहुचता है तो उसका एक हिंदुस्तानी मित्र उससे पूछता है: कैसा रहा हिंदुस्तान का दर्शन ?

वह बोलता है: "वास्तव में हिंदुस्तान एक अद्वितीय जगह है।

मैंने वाराणसी के घाट देखें, अक्षरधाम मंदिर देखा, इंडिया गेट लाल किला गेटवे ऑफ इंडिया अजंता एलोरा की गुफाएं पुरी का मंदिर, मथुरा जी, दिल्ली, मुंबई से लेकर भारत की हर वह छोटी बड़ी जगह देखी जो प्रसिद्द है।"

हिंदुस्तानी अपने देश की तारीफ सुनकर बहुत खुश हुआ। और   पूछा:   "हमारे हिंदुस्तानी भाई कैसे लगे ?"

अमेरिकी बोला: "वहां तो मैंने कोई हिंदुस्तानी देखा ही नहीं।"

हिंदुस्तानी उसका मुह देखने लगा !!

अमेरिकी बोलता रहा- "मैं एअरपोर्ट पर उतरा तो सबसे पहले मेरी भेट मराठीओं से हुई,

आगे बढा तो पंजाबीहरियाणवी, गुजराती, राजस्थानी , बिहारी, तमिल और आसामी जैसे बहुत से लोग मिले।

 छोटी जगहों पर गया तो बनारसी, जौनपुरी, सुल्तानपुरी, बरेलवी मिले।

नेताओं से मिला तो कांग्रेसी, भाजपाई, बसपाई, आप वाले।

गाँव में गया तो ब्राह्मण, जाट,यादव क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र मिले।

परन्तु हिंदुस्तानी तो कहीं मिले ही नही! 

कड़वा हैं किन्तु सत्य है

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मेरी टिप्पणी 

 फिर भी हिंदुस्तान बरकरार है!

'कड़वा हैं किंतु सत्य है!'

 मुसीबत इस बात की है कि मुघल गये, अंग्रेज गये,  लेकिन उनकी दी हुई गुलामी नहीं गई। हुआ यूं है कि उनकी दी हुई गुलामी के नक़्शे कदम पर ही चलने में हम अपना कर्तव्य समझ बैठे हैं!

 धन्यवाद! मेरे ब्लॉग के लिये योग्य है यह!

नौवेम्बर, 19, 2021

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