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न वो शिकारा मिला... न वो भाईजान मिले!
विजय दर्डा 21 फेब्रुआरी 2022
मेरी टिप्पणीः लेखक ने अपना मन्तव्य पेश किया है कि 'मैं वहां के लोगों की भावनाएं यहां इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि जनभावना की भी अहम भूमिका होती है.' यह वाक्य तो खेर ज्यो बाइडन और कमला हैरीस को भी बेतुक्की भरा लगेगा. इन दोनों की मानव अधिकार के प्रश्न उठाने वाली बात ज़रूर चली थी. ऐसा मन्तव्य कॉन्ग्रेस वंशीय विचारों का ही हिस्सा बन सकता है. कहिए कि भाजप ने आकर के कान्ग्रेस का दोहरेपन से भारत को छोड़वाया है.
एक बाजू लेखक कहता है पाकिस्तान के विरुद्ध में कि 'पड़ोसी मुल्क ने जो आग लगाई, उसने पूरे जनजीवन को
तहसनहल कर दिया..' लेकिन उस के सामने तराज़ू पर रख बैठे उनको एक 'अचरज' का अहसास जब उनको कहा गया गुलमर्ग में कि भारत के सामने 'पाकिस्तान की हार पर लोग उदास बैठे हैं, खाना तक नहीं
खाया है.' ऐसा तराजू को तो असली भारतीय यानि कि समझिए भाजप उसे दूर ही रखना चाहेगा. उलटा इतरत्र देश में पाकिस्तान से एकनिष्ठा पर कायम रहने वाले
काश्मीरी विद्यार्थिओं पर देशद्रोही का आरोप लगाकर भारत का नया आत्मविष्वास उठ
खड़ा कर लिया है. लेकिन एकनिष्ठा एक चीज़ है जिस पर कायम रहने में प्रवित्रता समझी
जानी चाहिए. उसको बदलने से ही तो
देशद्रोही का कलंक लगता है.
तराज़ू पर धारा 370 हटवाने की बात रख कर लेखक उससे अपनी
सहमती बताते हुए कहा कि 'मैं उन्हें समझा रहा था कि एक देश, एक झंडा
ओर एक कानून की आवश्यकता थी. इससे घुसपैठियों पर भी अंकुश लगेगा. आपका
जनजीवन बदलेगा. कश्मीर फिर से स्वर्ग बनेगा...' काश्मीरिओं की ओर उनके तराज़ू ने कहा कि 'लेकिन वे तड़पकर कहते थे कि इसके लिए धारा 370 हटाने की क्या जरूरत थी?'
फिर आया है लेख में उपर वाला वाक्य कि 'मैं वहां के लोगों की भावनाएं यहां इसलिए लिख रहा हूं
क्योंकि जनभावना की भी अहम भूमिका होती है.'
अहम भूमिका? जबरदस्त अहम भूमिका! ऐस कहिए कि 'श्रीनगर एयरपोर्ट पर सुरक्षा की
तीन परते',
'सीआईएसएफ और सीआरपीएफ की नजरों से
कोई चूक संभव ही नहीं', 'किनारे पर हर सौ गज बाद पुलिस नजर आ
रही'
'हर ओर हथियारों के साथ सीआरपीएफ के
जवान नजर आना.' इस अहम भूमिका का ही तो फलस्वरूप है.
सब से कोई अच्छी चीज़ जो इस भारत को मिली है वह है
भाजप, जिसने बिन रोक ठोक, बेझिझक धारा 370
हटवाकर जनभावना को उपर न लाने का जो वचनबद्धता
दिखाई, दुनिया जो कुछ भी समझे, कमला
हैरिस जो कुछ भी बोले.
लेखक यह कहता है कि 'कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाना है तो स्विट्जरलैंड की तरह संवारना होगा,
युवाओं को काम देना होगा, चिनार के पेड़ों को नई जिंदगी देनी होगी, शिकारों का दिल
संवारना होगा.' और साथ साथ मुद्दे वाली बात - 'लाल चौक पर बेझिझक जाकर तिरंगे को सलाम करते आना
होगा...!'
इस में दो चीज़ें पेश आ रहे हैं. एक तो यह है कि दुसरों कि ओर से देखने की शक्ती का अभाव.
गांधीजी को महात्मा कैसे कहा गया? आजकल तो इस के उपर प्रश्न हो रहा
है. एक वजह साफ है. इस का कारण था उनका सामने वाले कि नजर से भी
देखना. यह करते हुए ही शायद उन्हों ने तीन
गोलियां खाई जो आज का भारत भी दिलवाता. आम
हिंदूस्तानियों को यह बात पल्ले पड़ने वाली कतई नहीं इस लिए तो यह 'ख़िताब' चला गया गांधी के सीर पर. हमारे
भारत में किस की मजाल है कि खेलकूद के मैदान में कोई ताली बजाए ओरों के लिए? अंग्रेजों
से भारत को लोकतंत्र संस्थान प्राप्त हुआ है. भारतीय खूद लोकतांत्रिक है या नहीं वह एक दूसरी बात बनती है.
दूसरी बात है भारत में गाय को पूजा स्थान देने
की. गाय को क्या चाहिए? चारा ही तो चाहिए! नहीं मिला तो वो बेखूबी जानती है कि प्लास्टिक
बेगों मे लोग अन्न छुपाते हैं. ख़ेर, गाय कि पूजा करके हम भी उसके उसूलो के प्रेरित होते हैं और समझते
हैं कि 'युवाओं को काम देना होगा' और बात अपने आप सूलज जाएगी. शायद अग्रेज को यह बात से वाकीफ हो गये थे कि
इतने कामयाब हो पाए. चारा फेकने से बात
खतम. आम हिंदुस्तानीओं को महज खूशी की
तलाशी होती है, चारा मिल गया, गाय खूश, देश खूश.
यहां पर भौतिकतावाद और अध्यातमिक्तावाद का वाद पेश आता है. काश्मीरियों को गाय बनेने में क्या इतराज होता
है? अगर शायद वो हिंदू होते.... गाय को पूजते...
6.10 p.m. 01-03-2022 7.04 a.m. 03-03-2022
वॉट्सअप्प पर मेरा एक बयान...
उपरवाले की थोड़ी सी इज़्जत करना ज़रूरी है। सभी को अंग्रेजी बोलने के लिए नहीं बनाया है, नहीं तो संस्कृत, फारसी, उर्दू, हिंदी बोलने के लिए।
8-मार्च-2022
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