शुक्रवार, 25 मार्च 2022

कश्मीरः भारत का यूक्रैन!

Lokmat Samachar

मेरी टिप्पणी: भारत के विचारधारा को प्रभावित करने के लिए जैन धर्म के लिए अब से बेहतर समय नहीं रहा होगा। भारत का यह संकल्प को निर्देशित करने के लिए जैन धर्म का भावनात्मकता को काम में लाया गया है। हिंदू धर्म स्वयं भावनात्मकता को दूर रखने में विश्वाष रखता है। सिद्धांत रूप में तो यह निश्चित है ही। हिंदू धर्म किसी भी चीज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकता है। यह दुनिया भर के मांसाहार से परहेज करने वाला  जैन धर्म से परे है।   सूनामी हो, कोरोना वायरस हो, आहत भावनाओं का दौर हो,  दुनिया भर में भावनात्मक प्रभाव से टठस्ठ रहने में ही उसकी अहम पहचान बनती है। दुनिया भर में जो कुछ भी हो सकता है, उसके लिए समभाव और समाधान प्राप्त करने में उसका मुख्य उद्देश्य है।

 लेकिन यहां हमारे यहां  मुख्य रूप से भावनाओं को जगाने के लिए द कश्मीर फाइल्स चलचित्र को पेश किया गया है। कोई भी गहराई में नहीं जाना चाहता कि जो हुआ वह क्यों हुआ और कैसे उससे बचने की गुंजाइश रही होगी।  यहां भारत को कश्मीर पर अपने सक्त रवैये को सही ठहराने के लिए शायद यह कोशिश है। यहाँ कोई समाधान लाने का इरादा नहीं दिखता।  पंडितों के लिए या गैर-पंडितों के लिए।  संघर्ष जारी रहे और  फिल्में बनती रहे यही प्रार्थना है राज्य कर्ताओं की है, यूँ समझा जाय।

दूसरी तरफ सच्चाई यह है कि भारत कश्मीर को किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहेगा ऐसा मनोधारणा सामने आता है। आखिर में कुछ तो तर्क वाला हिसाब बनता है!  एक गैर-भावनात्मक तर्क! कश्मीरियों स्वयं की कोई गिनती नहीं ठहरती यह सच्चाई के सामने।   कश्मीरियों कितना ही लड़े यानि कि कितना ही आतंकवाद करे,  चाहे उनका अपना कोनसा ही जनमत हो, उसका कोई मतलब नहीं।  भारत तो उनके सिर के उपर से सरहद पार पाकिसतान और चीन पर नजर डाले हुए है। जैसे कि रूस यूक्रैन के उपर से नाटो को देखता है। फिर यहां पर इस बात को समझना कितना आसान हो जाता है। 

कश्मीर यानि भारत का यूक्रैन! । यह बहुत ही कुछ महान बात बनी है,  कि अंग्रेज से विरासत में मिला हुआ भारतीय साम्राज्य को कितनी बेखुबी से संचालन जारी रख पाने में कामयाबी मिल पाई है। शुरुआत का श्रेय नेहरू को जाता है,  और कई और प्रधानमंत्री के नाम लेते लेते आया है वर्तमान समय जहां प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जो इन सभी में सर्वश्रेष्ठ साबित हो रहे हैं।

आधुनिक समय के लिए लोकतंत्र के बाहरी पृष्ट भाग को इसकी प्रतिक्रिया द कश्मीर टाइम्स के रूप में मिलती है। भावनात्मक रूप से आवेशित माहौल और इसके परिणामस्वरूप वोट-बैंक,  अंतर्निहित साम्राज्यवादी प्रेरणा को बिना किसी को ध्यान खींचे चलने देता है।

एक बहुआयामी देश में लोगों को मूर्ख बनाना उसके लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। भाग्यवश स्थिती यह है कि भारत के देवताओं से राबता के लिए  उनको तो संस्कृत भाषा चाहिए और साम्राज्य से निपटने के लिए अंग्रेजी! इन दोनो की अपर्याप्त जानकारी की वहज से उनको आसानी से दुय्यम दर्जा और उपेक्षा का शिकार बनाया जा सकता है।  यह रही भारत साम्राज्य की एक मुख्य उपलब्धी जो और कहीं नहीं होगी.

12.00 25-03-2022 


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