Prof D K Giri
धर्म और हिंसा: भारतीय परिप्रेक्ष्य
प्रोफेसर डी के गिरि
मेरी
टिप्पणी: धर्मों ने निश्चित रूप से दुनिया को कम जटिल बना दिया है। यहाँ केवल
यहूदियों और मुसलमानों के बीच ही एक युद्ध है
ऐसा समझा जा रहा है। यह युद्ध में, असल में, जर्मनों, रूसियों, पोलिशों, मराठियों, केरलवासियों और असंख्य अन्य लोगों जो यहूदी धर्म को मानने
वाले हैं और इजरायईल में आके बसे हुए हैं, वे हैं एक बाजू और उनके सामने हैं फिलिस्तीनियों जो कि
इस्लामी धर्म को मानने वाले हैं ।
स्पष्ट रूप से यह युद्ध निहायत ही एक-तर्फा है, इतने सारे तरह तरह के लोग एक बाजू और दुसरी तरफ एक जो अपने ही मुल्क में अपना हक नहीं बजा पा रहे वे लोग है. लेकिन लोगों की पसंद यह है कि अपने अपने धर्मो के पीछे छिपना है, खुद को नहीं आगे लाना है जितना कि अपने धर्मों की नुमान्दगी करना है।
लेख में लिखा गया है कि कार्ल मार्क्स ने प्रसिद्ध रूप से कहा था कि "धर्म लोगों के लिए अफ़ीम है"। और जगह पर - लोग अपनी धार्मिक प्रथाओं या कथनों को छोड़ ही नहीं सकते थे ।
धर्म का मूलतः मतलब अप्रत्याशित ईश्वर से मुकाबला करने का कोई परिभाषित तरीका है। यह मूलतः ईश्वर के प्रति मानवीय दृष्टिकोण है । यह दृष्टिकोण भगवान महावीर, ईसा मसीह, पैगंबर मोहम्मद आदि जैसे अभूतपूर्व रूप से मजबूत प्रभावशाली लोगों और विभिन्न असंख्य स्वामीओं के माध्यम से स्थापित किया गया है या किया जा रहा है, जिस प्रक्रीया तब मौजूद थे और अब भी मौजूद हैं । यह प्रक्रिया अनंत है. यह अंततः मानव विरुध भगवान का मामला है । इसकी निरंतरता को नकारा नहीं जा सकता।
एक ईश्वरी अनुयायियों को दूसरे अनुयायियों के विरुद्ध खड़ा देखकर ख़ुद ईश्वर को मज़ाकिया अंदाज़ पेश आता होगा. नतीजा है तबाही. क्या एकमात्र ईश्वर, एक नियंत्रक कारक, जो कि वह है, सभी तबाही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए?
इस तथ्य पर सहमत होना कठिन है कि ईश्वर यह सब चाहते हैं। क्या वह चाहते थे कि सिंधी और पंजाबी अपने धर्म के लिए अपना घर, चूल्हा और भाषा छोड़ दें? अलग अलग ज़ात, यानीकि सिंधी का होना, पंजाबी का होना, अलग अलग भाषाएं ये सब ईश्वर-निर्मीत नहीं है, ऐसा कोई सिद्ध कर पाया है? ज़तियां ईश्वर-निर्मीत है, लेकिन मनघटन धर्म के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता !
धर्म वास्तव में ईश्वर निर्मित नहीं हैं। इसके विपरीत, उनका सार परमेश्वर की आंखों में धूल झोंकना है। भारत देश, धर्म से प्रेरीत, मानव-जनित धर्म-उन्मुखता का एक उत्पाद है। इसीके परिणामस्वरूप सिंधियों को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा । इसके लिए कहीं कोई मलाल नहीं है । कीसी को भी इसमें कोई अफसोस नहीं दिखाना, क्योंकि अंततः यह महसूस किया गया है कि यह सारी धार्मिकता है जो कि मायने रखती है, भगवान को धोखा देने के तरीके में योग्यता देखना मायने रखता है। अपनी भाषा, नस्ल, और जन्मस्थान, अंग्रेज़ों द्वारा छोड़े गए सभी चीज़ों के मद्देनजर, महत्वहीन हो गया है । सब भारत एक हो कर अंग्रेजों ने बनाई हुई बनी बनाई उपज को उपभोगने में होशियारी समझी गई है । यह कहीए कि यहां भौतिकवाद को सर्वोच्च स्थान दिया गया है ।
कौन कहता है कि देश का संविधान धर्म का रूप नहीं है? क्या यह इस्लाम या हिंदू धर्म या यहूदी धर्म की तरह मानव निर्मित धर्म नहीं कहेलाया जा सकता ? इसमें भी नियमों का भंडार है जैसे कि आम धर्मों में हैं।
उदाहरण के लिए, हेलमेट पहनना एक धर्म माना जा सकता है। इसे न पहनने पर आपको दंडित किया जाता है। इसका उद्देश्य सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं, अप्रत्याशित ईश्वर द्वारा उत्पन्न दुर्घटनाओं के प्रभावों का प्रतिकार करना है। कोई कारण नहीं कि 'धर्म लोगों के लिए अफ़ीम बनने से नहीं रुक सकता।' अप्रत्याशित की उपस्थिति हमेशा उन्हें परेशान करती रहे गी । तो फिर इससे बात साफ़ हो गयी कि धर्म क्या है!
असली हिंदू धर्म भगवान के सबसे करीब है ऐसा कहा जा सकता है। 'यीशु आपसे प्यार करते हैं' इस प्रकार के धर्मों से खासा विपरीत है। यह गुजराती, जर्मन, चीनी... उंगलियों के निशान, आधार कार्ड के मद्देनज़र दुनिया को अलग अलग पहचान देता है। लेकिन भारत के भारतीयों को अधिक मानवीय धर्मों की शरण में सांत्वना मिल रही है जहां मानवी भावनाओं को आसरा मिलता है, जिस में प्यार के साथ साथ द्वेश और अत्याचार भी शामील है। आज का हिंदू धर्म उसी तरह उसे उचित ठहराने में मदद करते हैं जैसे इज़राइल की सरकल्पना अत्याचारों को उचित ठहराता है या इस के मद्देनज़र हमास भी इसी मंच पर ख़डा हुआ है।
अगर हमास को बस फ़िलिस्तीनियों के लिए फ़िलिस्तीन चाहिए था तो ईश्वर उनके पास दौड़कर आता । भगवान इसी चीज़ को तो चाहते हैं कि लोग उन्हें समझें.
3.23 दोपहर, 13-11-2023
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