बुधवार, 15 नवंबर 2023

योजनाओं का उथल पुथल

Lokmat Times_20231104

 The identity trap/Rajiv Gupta

                                                                           पहचान कोन?/राजीव गुप्ता/04-11-2023


मेरी टिप्पणी: धर्म मनुष्य और ईश्वर के बीच का माध्यम है। यह एक मानव निर्मित सीढ़ी है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों के पास सीढ़ियों के अपने-अपने विकल्प हैं। समस्या तब उत्पन्न होती है जब दूर-दराज के बाहरी लोग आप पर हावी हो जाते हैंजो स्थानीय सीढ़ियाँ हटाकर अपनी सीढ़ियाँ लगा दें। इससे स्थानीय लोगों से चिपके रहने वालों और बाहरी लोगों का समर्थन करने वालों के बीच अप्राकृतिक ध्रुवीकरण होता है।

बाहर से आया हुआ विचार, भाषा, जिस पर आप हावी हो, आपको आपकी अपनी ही जमीन से हटवाता हैइसे कम पवित्र मानवाता है और कुछ दूरदिल्ली और लंदन की आकांक्षा करवाता है। दिल्ली ने लंदन को अपने प्रेरणास्रोत के रूप में से बाहर धकेल दिया और 1947 में इस सुदूरवर्ती स्थान के लिए एकमात्र दावेदार बन गई । कुछ लोगों ने दिल्ली पर नये कब्जा करने वालों के शासन को नापसंद किया और  अपना स्वयं का केंद्र बिंदु निर्धारित किया था। ऐसे के सब जानते हैं उन्हों ने अंग्रेजों से पाया गया भारत का कुछ हिस्सा अपने लिए प्राप्त कर लिया और इसे पाकिस्तान कहा।

अब मान लीजिए कि आँखों को अपनी दृष्टि के क्षेत्र से परे न देखने के लिए, प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए किसी भी चिह्न पर टिके रहने के लिए अगर संघर्ष किया गया, यानीकि यदि आप लाहौर के हैं, इत्तफाक से लाहोर के हैंइसकी ईश्वर-प्रदत्त भाषा, इसकी जातीयता जो दावा करती है कि आप इससे संबंधित हैंतो क्या विभिन्न सीढ़ियों, मानव निर्मित सीढ़ियों को उस ईश्वर निर्मित मनसूबे को बिगाड़ने की  अनुमति दी जानी चाहिए?

निश्चित रूप से, इज़राइल यहूदी धर्म की सीढ़ी की खोज करने का नतीजा है. अल्बर्ट आइंस्टीन  जर्मन हो न हो, उनको इज़राईली निश्चित रूप से कहलानी कोशिश की गई है । इसमें हिटलर की भी कम भूमिका नहीं थी, लेकिन फिर भी क्या यह सब प्रकृति के विपरीत नहीं जा रहा है यॆ सबजो कोई भी हो, जर्मन हो या  पोलिश,   साथ ही महाराष्ट्रीयन, केरलवासी जोड़ने वाले इज़राइल में क्या कर रहे हैंक्या यह एक प्राकृतिक प्रबंध में अपवित्रता को नहीं पेश किया जा रहा है?

हमास के लिए सर्वोत्तम मुक्ति ईश्वर प्रदत्त जातीयता को सर्वोच्च मानने का आह्वान करना है। मानव निर्मित सीढ़ियों को लताड़ना है!

निश्चित रूप से, दिल्ली पर अंग्रेजों का शासन 'मूल निवासियों' के शासन से बेहतर था। तब हमारे पास हर चीज़ सर्वोत्तम थी। अब 'हथियाने वालों' ने अपने ख़ुद के महत्व की कीमत पर अंग्रेजी भाषा पर कब्ज़ा करवा लिया है । यह सब भगवान-निर्मित योजनाओं का उथल पुथल करने में ही लगे रहने वाली बात बनी है । नाम है भारत.

लेखक बताते हैं, "एक स्वस्थ लोकतंत्र को लोगों के बीच बहस को प्रोत्साहित करना चाहिए।" क्या भारतीय लोकतंत्र पर्याप्त स्वस्थ है?


14-11-2023


 

अंग्रेजी मेॆ - be-your-own-tag.blogspot

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