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Pahalgam & Pakistan
April 24, 2025, 7:35 AM IST Syed Ata Hasnain in TOI Edit
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मेरी टिप्पणी: "जब 26/11 को मुंबई में अजमल कसाब और उसके साथियों ने 165 निर्दोष लोगों को गोलियों से
भून दिया था, तब आतंकवादियों ने अपने पीड़ितों की घर्म जानने की
कोशिश नहीं की थी।"
अजमल कसाब को शायद यह समझाया गया था कि उसकी बंदूक के दूसरी तरफ़ खड़ा हर कोई
व्यक्ति काफिर है, जिसे मारना उसके धर्म की नज़र में इनाम मिलना है।
इसलिए सीना तानो और हत्याओं का सिलसिला शुरू कर लो! कसाब ने शायद नर-नारी के बीच भी भेदभाव नहीं
किया। वह इस मामले में काफी सुधारवादी रहा होगा। "इस बात की गणना करना कि
यह एक कृत्य भारत की सांप्रदायिक शांति को कैसे आग में झोंक सकता है" यह
शायद एक बोनस के रूफ में देखा गया होगा, क्योंकि "इस तबाही के प्रायोजक अच्छी तरह
जानते हैं कि भारत में विभाजनकारी मुद्दे क्या हैं।"
यह बात काफी हद तक सही
है। दो-राष्ट्र सिद्धांत, अगर कांग्रेस के शासन में अव्यक्त था, तो आज केंद्र और कई राज्यों में भाजपा के बढ़ते
प्रभाव के साथ सबसे आगे है। जनता इस द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के बारे में पूरी तरह
से समर्थन करती है और इसलिए एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष के मुद्दे को खत्म करने की
बात को समझना आसान हो गया है।
"प्रत्येक सफल पर्यटन सीजन कश्मीरी आबादी को भारत
के साथ और अधिक करीब से जोड़ेगा और जम्मू-कश्मीर पर उभरते आख्यान में पाकिस्तान की
प्रासंगिकता को कम करता रहेगा।" जाहिर है, इससे प्रायोजकों को चिंता हो रही होगी। यह तथ्य कि कश्मीरी आबादी
भारत के करीब नहीं रही है. उस
के चलते पाकिस्तान से मदद मांगने वाले की आबादी बनी रही है। लेकिन, मान लीजिए, आबादी किसी 'उभरते आख्यान' में फिसल रही है, तो यह उनकी सारी मदद चौपट होने का डर होना
स्वाभाविक होगा।
लेकिन दृढ़ संकल्प और करो या मरो के दृष्टिकोण को
नकारा नहीं जा सकता, जैसा कि इस मामले में हुआ। दीवार जैसी दीवार खड़ी
की जा सकती है,
'बर्लिन की दीवार' जैसी विश्वसनीय रूप से अभेद्य दीवार, भारतीय सेना को इसका श्रेय जाता है, लेकिन फिर भी कुछ सावरकर, 'स्वतंत्रता सेनानी या तो कहीए आतंकवादी', इसमें घुस ही गए!
लेकिन मुद्दे की बात यह है कि यह सावरकरवादी कब
सेवानिवृत्त होंगे और कब उन्हें पेंशन मिलने लगेगी? हमारे पास उन्हें रोकने और काश्मीर में सामान्य
स्थिति लाने के लिए योजनाएं काफी सफल हो पा रही है, कईं कुछ बर्षों से! हां, लेकिन
फौज की निगरानी को दूर करना अबतक सम्भव नहीं हो पाया है जोकि इस घटना साबित करती
है. हथियार लैस सुरक्षा कर्मी को पाना अभी भी कुछ कम जरूरी नहीं है. पर्यटक ने यह सब होते हुए भी सामान्य स्थिति लाने में खासा योगदान किया
है. असुरक्षा के काले बादल को नजरअंदाज किया जा सकता
है। उसे नजरअंदाज किया गया, अन्यथा पर्यटक कश्मीर में इस तरह से उमड़ पड़ते?
सावरकरवादियों का शांतिपूर्वक सेवानिवृत्त
होना पहले से कहीं अधिक दूर हो पड़ा दिखता है। सीमा पार से उनकी ऑक्सीजन की
आपूर्ति को रोकना, सामने एक मजबूत बर्लिन की
दीवार कग खडा होना, एक जबरदस्ती का माहोल में, सेवानिवृती का कोई आसार नजर नहीं आता।
आखिर में अगर बात को सुलजनी ही है तो आज उत्पात
मचाने वाले मुख्य अपराधी को ऑक्सीजन की आपूर्ति को रोकने में निहित है। यह है धर्म
के संदर्भ में जीवन शैली के भेदभाव का विचारधारा है। मुसलमान या तो हिंदू होने के
संदर्भ में अपनी अपनी एकता और उसके आधार पर राज्य की नीति निर्धारित करना, जो पाकिस्तान और भारत को परिभाषित करता है, उसे समाप्त करना होगा। जय श्री राम और अल्लाह ओ
अकबर की पुकार को बंद करने की जरूरत है। केवल ईश्वर के संदर्भ में एकता होनी चाहिए
न कि धर्म के संदर्भ में. ईश्वर ने दी हुई पहचान,
जो आपको, उनको, सबको
परिभाषित करता है उसकी एकता को बनाए रखना चाहिए।
एक बार जब यह तय हो जाता है कि कश्मीर न तो हिंदू
का है, न मुसलमान का है, न कि भारत का
और न ही पाकिस्तान का, बल्कि सिर्फ़ कश्मीर का होना ही एकमात्र उपाय है, अगर सावरकर को हटना है तो।
लेकिन यह आसानी से नहीं हो सकता। विपक्ष भी कुछ
विपरीत बोलना नहीं चाहती. विपक्ष को भी अंग्रेजों द्वारा बनाई गई, थाली में परोसी गई चीज़ों को फ़ायदे के नजरीये से
देखना है। कश्मीर को पीड़ित होने दो। धर्मों को हावी होने दो। दो-राष्ट्र सिद्धांत
को मज़बूत होने दो!
शासक वर्ग अलग वर्ग है। उसे आम लोगों की क्या परवाह
है? पानी रोकना, व्यापार रोकना, वीज़ा रोकना सिर्फ़ आम जनता को परेशान करने वाली
बात है. इस एक बार की सफल घेराबंदी का तोड़ने से बेवजह की घबराहट पेश की गई
है. भारत की प्रतिक्रिया यह दर्शाती है जाने पाकिस्तान ने भारत का आत्मविश्वास का
नकाब को खिंच लिया हो! सारी कड़ी महेनत का पानी में
चले जाने वाली जाने बनी हो! इस लिये तो शायद पानी को बंद करने की बात हो
चली है.
उन्हों ने ते तो चुनचुन कर हिंदूओं को मारा.
हालांकी वे अंधाधूंद गोली चला शकते थे और एक बड़ा आंकड़ा पेश कर पाये होते. लेकिन नहीं, उन्हो ने भारतमाता को ही ठेंस पहुंचाने की बात करी. और नतीजे में रोशमें आए भारतमाता ने भारत में बड़ी मुश्किल से आए हुए
पाकिंस्तानींओं को एक ही रंग में देख कर, उनको समेट कर,
कुड़े कि तरह फेंकना चाहा है, वापस लौटाना
चाहा है। भारतमाता की जय हो!!!
इस नया भारत में मुगोलों का नाम भी लेना पाप समान
है, वहां महा मुश्किल से विज़ा निकाल
के आए पाकिस्तानिओं को कैसा बरदास्त किया जा रहा था, वह एक
भगवान ही जाने. हिंन्दू धर्म का सारे के सारे उलंघन हो रहा था।
सावरकरवादियों तरफ से और कोई कामयाबी की उम्मीद नहीं की गई होगी.
11:40, 28-04-2025
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