बुधवार, 11 जुलाई 2018

हिन्दू राष्ट्र बनाने की पैरवी

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10-जुन - 2018
"Zee news के संवाददाता सुधीर चौधरी ने पूरे देश के सामने इस्लामिक इतिहास का चिट्ठा खोल ही दिया, भारत में टीवी पर पहली बार इतना कहने का साहस किसी पत्रकार ने किया है। मेरा सेल्यूट है सुधीर चौधरी जी को।"

नीचे इसका मैंने कुछ सारांंश किया है और जवाब के रूप में मेरी टिप्पणी ज़रूर पढ़े!!!                      
                      भारत ती सीमाएं कैसे छोटी होती गई?  
अगर भारत के इतिहास पर घौर करे तो भारत की सीमाएं अफग़ानिस्तान के पार हो कर इरान को छूती थी.  एक इतिहासिक सत्य है कि जैसे जैस इस्लाम का प्रसार हूआ वैसे वैस भारत की सीमाएँ छोटी होती चली गई. आखरी बार भारत का नक्शा 1947 में बदला जब पाकिस्तान के रूप में भारत का एक बड़ा हिस्सा भारत से अलग हो गया और इस्लाम के नाम पर ही पाकिस्तान का भी निर्माण हुआ. भारत पर सब से पहेला सफल हमला मोहम्मद बिन कासिम ने किया था. संविधान के निर्माण करने वाले डॉ. भीमराओ अंबेडकर ने अपनी एक किताब में इस इतिहासीक घटना का ज़िकर किया है पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’. डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने इस किताब को लिखा है मूर्ती पूजको को या तो इस्लाम में दीक्षित कर दिया गया अथवा उन्हें तबाह कर दिया गया। खुदा का कथन है कि मूर्ती पूजकों से रियायत न बरती जाए.  अपितुं उनके गले काट ली जाए. यही समझ लो कि यही महान अल्ला का आदेश है. भारत में हिन्दू का नरसंहार का एक लंबा इतिहास रहा है। 
वर्ष 1265 में दिल्ली सलतनत के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन ने  मेवात में 1 लाख राजदूतों का कतल करवा दिया था.    (Book: The Indian Empire. Its People, History and Products. Historian: W. W. Hunter) 
वर्ष 1303 में दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ पर हमला करके 30 हज़ार हिन्दुओं का कत्ल कर दिया था. (Book: The State of War in South Asia. Author: Pradeep Barua)
 वर्ष 1353 में तुग़लक वंश के सुलतान फिरोज शाह तुगलक ने बंगाल में 1 लाख 80 हज़ार हिन्दुओं का कतल करवाया. (Book: Death by Government. Author: R. J. Rummel)
वर्ष 1365 से लेकर 1367 तक दो वर्ष के अंदर बहमनी सुल्तान ने विजयनगर के 5 लाख हिंदुओं का कत्ल करवा दिया. (Book: The Cambridge History of India Volume III. Author: Wolseley Haig)
इस के बाद वर्ष 1398 में तैमूर लंग की सेना ने  दिल्ली पर हमले से पहले एक लाख हिंदुओं कैदि की  हत्या करवाई.  (Book: Cambridge Economic History of India Vol-I, Author: Irfan Habib)
मुग़ल समराट अकबर ने नरसिंहपुर 48 हज़ार हिंदुओं का नरसंहार करवाया था. यह जगहा अब मध्य प्रदेश में है. (Book: The SAGE Encyclopedia of War: Social Science Perspectives. Author: Paul Joseph)
और वर्ष 1568 में अकबर ने चितौड़गढ़ पर हमला करके 30 हज़ार हिंदुओं को मरवा दिया था. इस हमले में 8 हज़ार राजपूत महिलाओं ने जौहर कर लिया था यानि खूद को मार दिया था. (Book: The Muslim Diaspora. Author: Everret Jenkins Jr.)
 वर्ष 1738 में इरानी हमलावर नादिरशाह ने भारत पर हमला करके दो साल के अंदर 3 लाख हिंदुओं को मरवा दिया था. (Book: Eminent Literary and Scientific Men of Italy, Spain. Author: Montgomery. J. Shelley)
वर्ष 1921 में केरल के मालाबार में दो हज़ार से ज़्यादा हिन्दुओं को मार दिया गया था। इस नरसंहार की वजह खिलाफत आंदोलन को बताया जाता है। 
वर्ष 1946 में मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग मनवाने के लिए  डायरेक्त एकशन डे की धमकी दी थी तब कलकत्ता में दंगे हुए थे और इन दंगों में भी 7 हज़ार से दस हज़ार के बीच हिन्दू या मुसलमान मारे गये थे।
और इसी साल नौवाखाली में भी जिन्ना के मुसलीम लीग के इशारे पर दंगे हुए जिस में 5 हज़ार हिन्दुओ को मार दिया गया था. 
इसके बाद जब बटवारा हुआ और पाकिस्तान बना तब पश्चमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान में लाखो की संख्या में हिंदुओं का नरसंहार हुआ था।
संध और कई हिन्दुवादी संघटन  हिन्दुओं पर हुए  इन्ही अत्यारों की बात कह कर हिन्दू राष्ट्र बनाने की पैरवी करते हैं और उसके पीछे जो वजह है उसीको समझाने के लिए हमने आपको...


मेरा जवाबः अगर अकबर, नादीरशाह, औरंगज़ेब नहीं औरंगज़ेब का तो नाम ही लिया गया है,  अपनी तलवारों की धार और तेज़ रखते, नरसंहार और धम्की से सारा की सारा हिंदूस्तान मुस्लीमपंथी बना देते, जैसे के इंडोनेशिया का उदाहरण लिया जाय तो पाकिस्तान बनने की नौबत न आती.  हिंदुस्तान ही अपनी जगह में बरकरार रहता. यह बात कोई भी समझ सकता है।
उनकी तरफ से ढील या लापरवाही बिल्कुल पेश आई और उतना ही नहीं कि हमें जीवित रखा, हिन्दू होने के नाम से जीवित रखा, हमें बहुसंख्य भी रहने दिया जो आगे चलके उन्हीं का हाल बेहाल कर दिया. अंग्रेजों से मिले लोकतंत्र की सरकल्पना ने अल्पसंख्य अकबरपंथी बुद्धिजीवियों के नीचे से जमीन खिसका दी.
रही बात अपने पुरातम शास्त्रों की, वहाँ कहीं भी हिन्दू या मुसलमान धर्म का ज़िक्र नहीं किया गया है। उस वक़्त न तो मुसलमान धर्म था ना हिन्दू धर्म था।  अहम बात यह है कि हिन्दू धर्म जिसका फारसी लोगो ने नाम दिया है उस में जातीयवाद, वर्णभेद का सदृढ उल्लेख है. जो जातीयवाद  जिस पर बाबासाहेब का विरोद्ध इतना था कि आखिककार में उन्हों ने धर्म-परिवर्तन भी कर लेना चाहा। 
भारत की जिसको मूल संकृत्ति कहा जाना चाहिए उस से ही हमने सामंजस न रहेने का पसंद किया है यह एक उल्लेखनिय बात है. मूल धर्म यह है कि जातीय धर्म एक वास्तविकता है.  उसमे शामिल कोई भी भाषा आ सकती है, कोई भी रहन सहन, खाने पीने का ज़ाईका, त्वचा का रंग, जो जो सारी दूनिया में शामिल है. भीन्नता प्रकृतिका नियम है.
भारतवर्ष की कोई सीमाएं नहीं है.  भागवान श्री कृण्ण को अभी का भारत की सीमा में बाँधित रखना यह कहां से बेतुकी की बात मैदान में लाई गई है?  पाकिस्तान गया, पाकिस्तान वाला भारत का हिस्सा चला हिन्दुओं के हाथ से निकलते हुए मुसलमानों के हाथ चला गया और यह भारतवर्ष के हिस्से में न रहा. यह बात किसने कही?  भगवान श्रीकृष्ण ने आ कर किसी के कानों में कही कि अभी मेरा कोई भी आधिपत्य बाकी की दुनिया में नहीं रहा है, जो पाकिस्तान वाले हिस्से में था वह भी चला गया है, कम से कम मुझे आपका हिन्दू राष्ट्र में मुझे, बेचारे को आश्ररा दो!  
सिर्फ अभी का भारत तक सीमित रखने का संध परिवार का इरादा, या तो कहिए कि सारे अभी के सारे हिन्दू राष्ट्रप्रेमी भाई-बहन का इरादा,  एक अनसमझे घोर अपराध के तोर पर सामने आता है. हिन्दू धर्म, मुस्लिम धर्म के नाम पर लोगों के ऊपर एकता लादना जैसे कि अपनी अपनी भाषा या पहेचान को  दुय्यम स्थान देने पर राज़ी करना, उस से बदतर अपराध कौन सा हो सकता है विधाता के सामने?
सिंध का होना सिंध का होना होता है, हिन्दू हो या मुसलमान. पंजाब का होना, पंजाब का होना होता है. रूस का होना रूस का होना होता है. धर्म अलग होने से जाति नहीं बदलती. चेहरा और जिस्म वही रहता है.  यह सब दुनिया  का हिस्सा है, भारतवर्ष, जो दुनिया का दुसरा नाम है, उस का हिस्सा है, आपको यह पसंद नहीं आ सकता क्योंकि आपको अपनी संकुचित दुनिया में विष्वास रखते है. विस्तार वाली दुनिया में नहीं. बाहर की दुनिया गैर है, गैर ही रहने दो. चाहे कुछ भी जो कहे कि वास्तविकता हो, गिता-संदेश हो.
पैर फैलाकर अंग्रेज, ऊपरवाले के दूत के रूप में सारी दुनिया का राज किया. हमने उनसे क्या सीखा?  यह प्रश्नही नहीं है कि हम भी कहीं ऊपरवाले के दूत बन सकते हैं. सारी दुनिया को हम भी रास्ता दिखा सकते हैं. नहीं, हम को तो अपना हिन्दुराष्ट्र बनाकर बाकी दुनिया से दूर  अपनी संकुचीत ज़िंदगी के साथ आरामदेह गुज़ारनी है. 
4.46 शाम, 02-07-2018   

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