शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

भारतीय राष्ट्रवाद को समझो यारो!

सम्बित पात्रा का एक गहरा विडीयो... 

साम्बित पात्रा एक भारतीय राजनीतिज्ञ,  भाजपा के आधिकारिक प्रवक्ता

मेरी टीपण्णीः

 

1.  भारत दुनिया का सब से बडा लोकतंत्र.   लोकतंत्र अग्रेज की देन है.  अपने संकृति के हिस्से में शामील भी है या नहीं वो कोन बताए?   लोकतंत्र ही के वजह से हिंदुत्व, बहुजनी भारतीयता  सामने आ के हावी हो पाया और नतीजे में पाकिस्तान बना और हुआ जो उस से सैंकड़ो लोगों की बरबादी!

 और सब से बड़ा लोकतंत्र देश की आबादी का प्रतीक है. आबादी इस लिए है कि हम ने दुनिया का अच्छा खासा हिस्सा सम्मिलित कर रखा है, और यह भी अंग्रेजों की मेहनत का फल है.

2.  एक सुद्ध जीवित लोकतंत्र, भारत.  उत्तर युरोप से लेकर जापान तक. सारे पूर्व गोलार्द्ध में.  यह तो अंग्रेजों की दी हुई देन से हम कितने जुड़े हुएं हैं, वह कितना उपयुक्त रहा है,  माफिक आया है,  इस बात को उजागर करता है.  सारा श्रेय इधर अंग्रेज की संकृती को जाता है।

3.  हम दुनिया की एकमात्र जीवित सभ्यता हैं। हम कि एकमात्र जीवित सभ्यता है, कि मेसोपोटेमिया, रोमन वगैरे सभ्यता लोप हो चुकी हैं। वास्तविकता यह है कि प्राचीन सभ्याताओं के आधार से ही हमारे आज की सभ्यताओं विकसीत होती आ रही है. जैसे कि एक तरफ लेटीन भाषा सभ्यता थी, उसी तरह हमारी ओर संकृत भाषा सभ्यता रही थी.  हिसाब बराबरी का है।  लेकीन हमारे कीसी भी हालात में पुरानी सभ्यता का विचार जीवित रखना पसंद किया है, शायद घोड़ा संकृत भाषा क्यों न जाने, अंग्रेजी तो जा ने गा ही।  यूं सो बात है।  अंग्रेज साम्राज्य अभी तो हमारे कबज़े में हैं।  चाहे कोन उसे चलाए,  साम्राज्य तो आखिर में साम्राज्य है. भारत माता की जय।

ऐसा हम कहे कि हम अपनी खूद की प्रचीन सभ्यता पर ही विश्वास रखना चाहते हैं तो जरूर रखें, पर यह बात का भी नज़र अंदाज ना करे कि कोई एक नजफगढ़, कोई अफगानिस्तान की ओर की सभ्यता अपनी बहुमुल्य प्राचीन सभ्यता को हावी कर ले तो कोन सी सभ्यता ज़्यादा विकसीत हुई? कितनी छोटी सी जगह मान लो भारतनुमा बड़ा देश को अपनी उंगली पर नचाती है तो फिर कोन सभ्यता मज़बूत और कोन नहीं?  अंग्रेज भारत से 13 गुना छोटा है तो फिर कहां का रहा हिसाब करने का मौका?  मेकेलो का जिक्र जो किया, उसका लाभ लेते हुए कहना चाहिए कि वह वास्तवीक रूप वे हमारे अपने असली राष्ट्र पिता के रूप में पेश आते हैं। आज देश का सारा दारो मदार अंग्रेजी भाषा पर ही निर्भर है.  उसका श्रेय कोन ले जाता है?

मोहम्मद इकबाल के तराना का जिक्र कि सम्बित पात्रा साहब ने जो कियाः

 युनान व मिस्र व रोमा सब हट गये जहां से

अब तक मगर है बाकी नाम व निशान हमारा

कि कुच्छ बात है कि हसती मिटती नहीं हमारी

सदीयों रहा है दुशमन दौर-ए-ज़मां हमारा

 यह तो खैर दिल फुलाने वाला सहित्यिक राष्ट्रगीत के रूप में है.  यहां हम भूलते हैं कि वह हिंदूस्तां की हस्ती की बात हो रही है जो कि उस 1000 साल की अपने आज के निजी हिसाब से विदेशी आधिंता मे गुजरी. लोकतंत्र का हिंदुत्वावादी  का बढ़ता प्रभाव देखते हुए मोहम्मद इकबाल पाकिस्तान का पुरोगामी हो गये थे।  और तो और वह एक काश्मिरी भी थे.  अगर वे आज के दौर में गुजरे होते तो एक संभावना हट नहीं सकती कि उनकी भी आतंगवादी के तौर पर अपने निहायत ही काबिल ब्रटिश प्रक्षिक्षीत फोज से मारे जाने की ख़बर आती और हम अपना भारत में जल्लोश मनाते.  

4. एक मात्र बड़ा देश है कि इतिहास में जिस ने किसी और देशों पर आक्रमण नहीं किया. औरों पर आक्रमण कहां करे? हमारा ही वजूद दूसरों के हाथ मे जकड़ा हूआ था.  यह बात गलत है कि राजा राजाओं का मुख्य उद्देश्य बगलवाले राज्य को हड़प कर अपने पैर फैलाना न रहा हो.  मानवी मात्र की मांग मर्यादा एक से हैं, यहां के हो या वहां के. 

5.  एक मात्र देश जहां सारी दुनिया के धर्म मौजूद है.  यहां है हमारी सहिस्णुता. सब धर्म समभाव.  हमारे 33 करोड़ देवतां है तो कुछ उस का प्रतिबिंब तो होना ही है जो अच्छा ही है.  दूसरे और मानव निर्मित धर्म अपने अपने धर्म के प्रति वफादारी  पर वजन देतें हैं. इसी लिए वहां आपस में बैर रखना कम नजर आते हैं. लेकीन आज हम समान्ता लाने में व्यस्त रहते हैं.  जो और करे हम क्यों न करे, कि हम भी मानव है।  हम भी और मानव की निजी सहिष्णुता को पेश करेंगे.  लेकीन यह बात बिगाड़ने की है, असली धर्म को कमज़ोर करने की बात है. हिंदु धर्म मानव निर्मीत नहीं है.  वह किसी और धर्म से मुकाबला करने के लिए मोहताज नहीं.

6 "हमारे यहां राष्ट्र को भारत माता कहा गया है, ज़मीन का तुकड़ा नहीं कहा गया." यहां पर भी संदिग्ध बात बनती है. यह विचार हमारा है कि यह भी बाहर से आया? उन लोगों में देश को मधर कंट्री यानी कि मात्रुभूमी कहेते हैं या तो फाधर कंट्री यानी कि पितृभूमी कहते हैं।  और तो और राष्ट्र प्रेम उन्होंने हम से सीखा कि हमने उनसे?

और इस में लिखा गया कि क्या वह चीज़ है कि रोमन एंपायर न रहा, ब्रटिश और फ्रेंच अलग अलग 'ज़मीन के तुक़ड़े' बन कर पेश आयें,  उनको जोड़ कर रखने वाली चेतना न रही उनमें, और हम तो खैर  चेतना से भरपूर "अमरनाथ के लेके रामेश्वरम तक, और काशी विश्वनाथ से लेके मल्लिकार्जुन तक आप पूरे देश से जुड़ जाते हैं."

लेकीन श्री लंका का उदाहरण देके संबित साहब ने गडबड कर ली. उनहोंने कहा कि अगर आज के सारे problems – (समस्या)  का solutions – (उपाय)  चाहिए तो solutions India से मिलेगा जोकि हम दुनिया के एक लौटे देश है जिस ने कभी भी किसी के उपर control (नियंत्रण) करने की कोशिश नहीं की साहब!  और वह  inspiration (प्रेरणा स्त्रोत) कहां से आता है? मैं उदाहण देता हूं। भागवान राम ने लंका को कबज़ा किया रावण को मार कर। क्या उसका annexation (राज्य-हरण) किया? नहीं। वहां कोई अपना deputy  (डिप्टी) बिठाया? नहीं। Indirect control (अप्रत्यक्ष नियंत्रण) किया?  नहीं!"

श्री लंका को चेतना से जोड़ने में क्या आपत्ती हुई बल्कि यह कि उसको अंग्रज ने अलग सा रखा था।  जो हाथ में नहीं, जीस पर कोई करार नहीं, जीस में कोई महाराजा का सिक्का, सही नहीं, उसको हम कैसे जो़ड़ सकते हैं?  और एक बार के जोड़ भी गया तो उस को भी हम कैसे छोड़ सकते हैं?

यहां पर सम्बित साहब ने एक जबरदस्त बात छेड़ी कि – “देखिये country अलग है nation अलग है देश अलग है, राज्य अलग है और राष्ट्र अलग है।  देश है ज़मीन, राज्य है political authority. ज़रा सी political authority कमज़ोर हुई USSR पंद्रह तुकड़ा में भागित हो गए. पूरा युरोप Roman Empire के रूप में एक था हजार साल  पहले।"  यह सब political authority यानी कि राजनीतिक अधिकार कमज़ोर होने का नतीजा है. रोमन एम्पायर के ब्रिटेन और फ्रांस सदीयों से साथ साथ न रहते हुए सारी दुनिया को अपना अपना वजूद दिखाकर फिर रहे हैं. यह तो सब परहेज़ है हमारे यहां। इसी को कहते हैं हमारी प्राचीन गहरी सभ्यता का साबूत होना। संकृत भाषा हो न हो, चाहे उसके लिए अंग्रेजी ही अंग्रेजी क्यों न हो जाय।  हम तो आंतरीक तौर पर कमज़ोर बनना चाहते हैं कि सारी दुनिया को हमारे भीतर के फ्रांस और ब्रिटन अपने अलग से वजूद बताते न फरे। सिर्फ कहे के हम सब एक हैं, भारतीय है, इंडियन है। पर याद रहे इंडिया को इतनी ही इज्जत मिलनी चाहिये जितनी की और कोई देश को. जो देश बगल वाले छोटा सा बांगलादेश ही क्यों न हो।

 आखीर मी कुछ बात है कि इतना खर्च करके हमने Statue of Unity (स्टेट्यू ऑफ युनिटी)  जो बनाया.  Inspiration - प्रेरणा स्त्रोत- तो होना है, नहीं हो तो जबरदस्ती होना है. इस में कोई दुविधा की कोई गुंजाईश न हो. यानी कि  राम और श्रीलंका की बात, खबरदार, जरा हलके में ही लिजीए गा।

और अभी तो हम राम मंदीर बनाने जा रहें हैं।  उसका क्या प्रतीक बनता है।  बिचारे राम का कोई घर नहीं था।  घर था जो बाबरी मसजीद ने हड़प लिया था।  कितनी हुई बेइज़्ज़ती बाहर रास्ते पर आ जाने की!  राम बिचारे मारा मारा फिरता रहा कि भाषा भी कोई आए संकृत के अलावा.  शायद उनको हिंदी माराठी आ गई हो तो आ गई हो, लेकीन फ्रेंच और अंग्रेजी तो महा मुशकिल!  और अरबी फारशी को कतई नहीं।  यानी कि हम नहीं चाहते कि वे आये हो  हमारे लाडले भगवान को। भगवान को लाडले कैसे रखे, इस लिए तो मंदीर बनते हैं।  

मद्दे की बात यह है कि हिंदू धर्म की पहुंच मौजूद भारत तक ही हो ऐसा हमारी संकृती कहती है. खुदा को भी कर लेना है कैद।  न खाए कुछ और, न बोले कुछ और.  और हम कहते हैं वासुदेवकुटुंबकम्। सारा जहाँ एक परीवार।  काश्मीर से तो उबरे!

काश्मीर हमारी उस चेतना का ही विषय है.  उस चेतना का जो सम्बित साहब ने उल्लेख किया।  उस चेतना आगे चलके नानकाना साहिब और सिंध को भी शामील करती है उनहोंने कहा।  अफसोस वे पाकिस्तान में चले गये. पाकिस्तान जो, वहां के लोग, और बाकी सब दुनिया के लोग जो हमारी चेतना के दायरे में कभी नहीं आ सकते। 

जब तक यह चेतना बनी रहेगी हमारा यह विशेष भारत बना रहेगा, हमारी पुरानी सभ्यता का प्रतीक बरकरार रहेगा, जिस का भारतीय जनता पार्टी या तो कॉंग्रेस पार्टी सदा नुमाइंदगी करेगा. यानि की बटवारा सदा ज़िन्दा रहे! लोगों का हालबेहाल से क्या वास्ता? बटवारा ही का प्रेरणा सोत्र भारत सदा बना रहे! यानि की वास्तवीक तौर पर नकाब डाला हुआ ब्रिटीश साम्राज्य सदा बना रहे!  भारत माता की जय!

उम्मीद है कि आपको भारतीय राष्ट्रवाद को समझो यरो  इसमे की तीखी बात आप तक पहुंची होगी!

4.25 सायं, 21-08-2020




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