अनोखा
दर्शनशास्त्र
एक आदमी
मूलरूप से अकेला है। उसका जन्म एक विशेष दिन, एक निश्चित
समय पर होता है, जिस पर उसकी कुंडली बनती है, जिसके आधार पर कुछ मामलों में उसका नाम तय किया
जाता है। ऐसा लग सकता है कि वह अपने जीवित जीवन में अकेला नहीं है, लेकिन अपनी मृत्यु के समय वह काफी हैरान है कि वह
वास्तव में कितना अकेला है। उसे अहसास होता है कि वह सिर्फ अकेला मरने की ताक
में है, जबकि उसके बाकी बचे लोग, जिन्हें
अभी तक इस बात का कोई संकेत ही नहीं मिला है कि जीवन का अर्थ मृत्यु है, उसको उसके बिस्तर के ईदगिर्द
से देख रहे होते हैं।
कोई भी
विमान परिचारिका इसकी पुष्टि करेगी। यदि उसकी नौकरी के कार्यकाल में ऐसा होता है कि
उसके विमान का अपहरण कर लिया जाता है और अपहरणकर्ता
द्वारा अंधाधुंध गोलीयां मारी जाती है, तभी उस वक़्त यह महसूस होता
है कि आप खुद ही अपने लिए मौजुद है। आपका पिता
हों या माता, मित्र हों या रिश्तेदार कोई किसी का नहीं रहता
है जबकि गोली किसको भी, कभी भी लग सकती है।
क्रिकेट
के खेल में एक अधिक अनुकूल सादृश्य है। बाउंसरों की बौछार का सामना करने वाला एक बल्लेबाज, जब उसे उनका सामना करना होता है तो उसे अकेले ही उनका सामना करना पड़ता है। विरोधी टीम के ग्यारह
खिलाड़ी उसके खून के लिए तरसे होते हैं। यही तो जीवन होता है। यानि की अपना बचाव करते रहना
और यदि संभव हो तो, अपने लिए
रास्ते बनाते रहना चाहे कितना ही निराशाजनक
दौर क्यों न आया हो।
यदि आप
एक हत्या करने वाले हो, तो फिर देखिये कि आपके परिवार के सदस्य आपके साथ
फोटो खिंचवाने से कैसे दूर भागते हैं। आपका हाथ के ठस्से आपको और सिर्फ आपको ही
मौके ए वारदात पर हाजिर होने की पुस्टी कर बैठता है और उस वक़्त सारी दुनिया जाने आप
को अकेले कर देने के लिए तुली होती है.
इसका मतलब
है कि हर कोई खास और अकेला है। राज ठाकरे खास और अकेले हैं। उनके बहुत सारे अनुयायी
हो सकते हैं जो पूरे दिल से उनकी विचार प्रक्रियाओं से सहेमत होते होंगे लेकिन फिर
भी वे अकेले हैं। उनका उत्तर भारतियों के खिलाफ अभियान रहा था। एक उत्तर भारतीय, एक
भगोड़ा बिहारी, बिखरा हुआ बिहारी भी अकेला है। वह वास्तव में अपने आप में एक राष्ट्र
है। वह अपने फिंगरप्रिंट, अंगुली की छाप के रूप में एक झंडा धारण करता है। और उसकी अपनी
जिसमानी सरकार धारण करता है। वह अपनी सरकार के बिना जीवित नहीं रह सकता! यानि कि उसको चाहिए निश्चित समय पर भोजन, प्रतिदिन
दांतों का ब्रश करना...आदि।
मान लीजिए
लोग उसके पीछे पड़े हो और वह बंबई की भीड़ में गुल हो जाए, पिटाई से बच जाए, तो उसे बाहर निकालना मुश्किल होगा। अगर गांधी को
दक्षिण अफ्रीका में ढुंढ निकालना हो तो वे आराम से पकड़े जाते। इधर, बिहारी मनसे के नजरों से और भी बच निकल पड़ेगा, अगर वह धाराप्रवाह स्थानीय भाषा मराठी बोलता हो। लेकिन जो लोग बिहारी को बिहारी कहने पर तुले हुए होते हैं, उनके लिए एक अमिट और प्रभावी
तरीका है, यानी कि उसको माइक्रोस्कोप के
नीचे लाना।
अंग्रेज़ों
के पास क्या खास कारण था जो हम नहीं जानते थे, हो सकता है कि वे जानते थे कि आगे क्या होने
वाला है, उन्होंने कश्मीरियों को माइक्रोस्कोप के नीचे डाला
था और अपने शोध का खुलासा किया था वह यह कि मुस्लिम और हिंदू दोनों
कश्मीरी एक ही जातीयता के है। आगे जा कर अगर हम हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई, पंजाबी, मराठी, कन्नड वगैरे को जाँच/तेस्ट स्लाइड के तहत लाएंगे तो अपना अभी का धर्म के आधार पर आबादी को विभाजित करने का मनसूबा घोर अपराध के रूप में स्पष्ट होता हुआ नज़र आएगा।
मनसे की
गतिविधियां एक "भारतीय" को विचलित कर रही थीं, लेकिन वही
भारतीय एक बांग्लादेशी का शिकार करना उचित समझ रहा है। हमें अपने बंगालियों पर गर्व
है, लेकिन उन शिकार के अधिन बंगालियों पर सख्त कारवाई
के लिए आमादा है। दरअसल, दर्द यह है कि खुद भारतीय बंगाली
दूसरे बंगाली को बर्दाश्त नहीं करना चाहता। उन्होंने पश्चिम बंगाल के "पश्चिम"
हिस्से को जाने नहीं दिया है। उसी तरह, एक मुल्तानी अपने मुल्तान को वापस नहीं जाना चाहेगा।
मुल्तान के लोगों की नई पीढ़ी एक विशिष्ट मुल्तानी भाषा का पालन नहीं करेगी, यदि कोई अलग भाषा होती हो तो। सिंधी वापस जाने के बजाय
गैर-सिंधी भाषी बनना पसंद करेंगे। लेकिन बात यह है आपका अपरिवर्तनीय रूप बदल नहीं
सकता। अगर हत्या के हथियार के उपर आपके हस्ताक्षर हो, यानी
कि अंगुली की छाप हो, आपकी इच्छाएं, आपके परिवार
की इच्छाएं, जो भी हो, इन्हें गीनी नहीं
जाती. यहां आपका अपरिवर्तनीय रूप, आपके
अनोखा रूप सामने रखा जाता है जो आप वास्तव में हैं, जिससे आपकी पहचान की पुस्टी होती है। यानि कि
आपका मुलतानी होने का फिंगरप्रिंट, सिन्धी होने का फिंगरप्रिंट।
कोई
एक दिन, भारतीय सेना भारत की स्वतंत्रता से संबंधित एक समारोह
में दर्शकों को प्रेरित कर रही थी कि एक सैनिक को भूल जाना चाहिए कि वह कौन है बल्कि
कि खुद को एक हिंदुस्तानी के रूप में पहचानें। ऐसा क्यों? हमें पहले कभी किसी चीज़ से अपनी पहचान बनाने की जरूरत नहीं पड़ी होगी। निश्चित रूप से जब अंग्रेज़ थे, जब मुगल थे हमारा जीवन हमारा
ही रहा होगा। पंजाब में एक ग्रामीण अपनी धरती
पर खेती करने में मशगुल, अपने धर्म के बारे
में बेपरवाह होगा, और बेपरवाह होगा कि उसके
ऊपर कौन राजा राज कर रहा होगा - चाहे वह एक मुस्लिम सुल्तान, या एक सिख राजा, या तो ब्रिटिश साम्राज्यवादियों.
1947 से पहले, पाकिस्तान पंजाब के क्षेत्र किसी
भी भारतीय पंजाब क्षेत्र की तरह ही थे। सभी का अपना शांतिपूर्ण जीवन व्यतित हो रहा
था। लेकिन फिर पीछे से आने वाला उनकी ज़िन्दगी में उथल-पुथल पहुँचाने वाला महत्वाकांक्षी नेहरू ने किसी भी किस्म से ऐसे ग्रामीणों का भला नहीं किया जिनका घर संयोगवष
सरहद से गलत बाजू हो पड़ा था. जिनका सदीयों पुराना अस्तित्व को ठुकराने पर मजबूर होना पड़ा। दुर्भाग्यपूर्ण ये प्रभावितों के
लिए 'आज़ादी' पाने में उत्सव की तीलमात्र
की भी बात नहीं बनी होगी। यह उत्सव वास्तवीक में नेहरू और उनके लगते अन्य लोगों के
लिए था जिन्हें फिरंगियों से देश का कमान संभाल पाने का मौका जो पाया, अंग्रेजों की छोड़ी हुई
खुर्शीओं पर बैठ कर उछलने का मौका जो मिला!
शासित
और शासक के बीच तीक्ष्ण विभाजन रेखा समाप्त हो गई है, लेखिन मुख्यरूप
से शासक बनने के लिए अंग्रेजों ने बनाये हुए इस देश में देश की आबादी के केवल 3 प्रतिशत अंग्रेजी ठीकठाक बोलने वाले लोगों में
शामिल होना पड़ता है, यह एक वास्तविकता है। फिर भी, इस वास्तविकता होते हुए भी, लोग इस भारत से मंत्रमुग्ध कर देने वाली शक्ति प्रदान करते हैं
जिससे एक भाषिय बांग्लादेश जैसे छोटे देश के सामने भी अपने प्रिय भारत की जीत और हार
में भावनात्मक रूप से शामिल होते हैं और इन में शामिल होने में उन्हें कुछ भी गलत होने का अहसास नहीं होता। यहां कोई तो कहे कि इससे
ज्यादा हास्यास्पद विडंबना क्या हो सकती है!
प्रश्न
वह है कि क्या है जो राष्ट्रीयता को परिभाषित करता है। स्पष्ट रूप से एक अकेला व्यक्ति एक
राष्ट्र के रूप में नहीं पेश आ सकता, हालांकि
वह एक राष्ट्र है जैसा कि ऊपर परिभाषित किया गया है। एक राष्ट्र क्या हो सकता है? वह
है उसका शहर, वह है उसका जिला,
यदि नहीं तो उसका भाषानिर्धारित राज्य, लेकिन निश्चित
रूप से भारत का आकार और विस्तार उसमें शामिल नहीं होना
चाहिए जहां आप केवल एक ही फुटबॉल टीम को भिन्नता भरी दुनिया में सामना करने की अनुमति देता है। अगर पंजाब, कश्मीर
भारत से जुड़े हो तो शायद इस लिए होना चाहिए कि साथ रहने में हमेशा मदद मिलती है। यह
सुविधा की बात है, और कुछ नहीं। अगर
भारतीय होने में एक नया (भारतीय) अंग्रेजी समाज बनाना पड़े और यह कहना पड़े कि जीवन का अर्थ बस यह ही है, तो यह एक जघन्य अपराध में निवेश करना जैसा है और दर्दनाक तथ्य यह है कि यह समाज
बढ़ रहा है, जघन्य अपराध बढ़ रहा है, अब पहले
से भी कहीं ज्यादा।
02-04-2022
अधिक
..
इसका मतलब
यह है कि हम में से प्रत्येक को अलगाव के अधीन होना चाहिए, अपनीअपनी विशेषताओं भरेपड़े व्यक्ति के रूप में
देखा जाना चाहिए। हालाँकि, यह बात है कि हम अपने जीवन के शुरुआती चरणों में
अपने माता-पिता, रिश्तेदारों और रिश्तेदारों के
दोस्तों के सानिध्य से अपने अस्तित्व का श्रेय देना होता है। हमें अपनी त्वचा का रंग/ढंग अपने माता-पिता से विरासत में
मिलता है। बोले जाने वाले पहले शब्द उन प्रियजनों की भाषा से संबंधित होते हैं जिन्होंने
अपने गैर-बोलने वाले दिनों में हमें अच्छे
मिज़ाज़ में रखा। उपने मुंह की आकृति उपने माता-पिता की भाषा और संभवत: अडोलपडोस की भाषा
को प्रतिबिंबित करता है। खान-पान,
रहन-सहन, चलने/दौड़ने का तरीका, बात करने का तरीका यह सब हमें नहीं दिखाता कि यह
सारी चीज़ बेकार है और बाहर इससे कई बेहतर दुनिया इंतज़ार कर रही है। अपने नजरों
में पहले एक मजबूत घेरा बनता है जिस में शुरू करने के लिए अपना परिवार और अडोसपडोस
के लोग शामिल होते हैं। फिर घेरा अपना इलाका, अपना कसबा,
अपना जिला, अपना राज्य,
आखिर में अपनी दुनिया शामिल करता है। यह सब परमेश्वर की अपनी योजना के अनुरूप है,
यह तो मानना ही चाहिए।
अब जबकि
परमेश्वर ने इतना कुछ किया है कि हम में से हर एक अलग हो, उन्होंने फिर भी लोगों को एक
साथ जोड़ने वाली सामाजिक समानता डाली हुई है। भाषा के रूप में समानताएं, भाषा की
विशेष बोली के रूप में समानताएं, लोगों की दिखने में सामानताएं, खाना-पीना में, वगैरे में, जो अपनेअपने पृथ्वी के
उस क्षेत्र के लिए विशिष्ट हो। और यह सब स्थानीय समानताएं कम होती जाती हैं जितना
कि दूर दूर चलते जाओ, इतना कि अलगअलग देशों का बनना भी उपरनाले की पूर्व
निर्देशीत योजना है यह सब जानते हैं।
इस
तरह भगवान ने एक अनोखा आदमी बनाया है। उसका जीवन और रहन-सहन
अद्वितीय है। उनका समय और स्थान अद्वितीय है। वह एक समय में एक वर्ग फुट क्षेत्र में
रहता है जब वह खड़ा होता है और दुनिया का जो भी हिस्सा हो वह जहां खड़ा हो उस
वक़्त और स्थान पर सिर्फ वह ही खड़ा होता है।
उसका अनोखा अंगुली चिन्ह और उसका अनोखा समय और स्थान उसे खुद एक राष्ट्र बनाता है। वह एक स्वतंत्र
व्यक्ति है। उसे जीवन की ख़ुद ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, अपने मामलों
का प्रबंधन स्वयं करना पड़ता है और उपरवाले द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र इकाई के रूप में अपनी
भूमिका निभानी होती है।
इसका मतलब
यह हुआ कि अगर हमारे यहां महाराष्ट्र में एक उत्तरप्रदेशी पाया जाता है, तो वह
इसके लिए उतना ही जिम्मेदार है जितना कि वह इस तथ्य के बारे में है कि उसका जन्म एक
विशेष दिन हुआ था। वह एक विशेष जगह से तालूक रखता है। वह पहले खुद का, बाद में
अपने परिवार का, अपने गांव, जिले और अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करता है। वह
अपने मुंह से निकलने वाली शब्दरूपी मधूर ध्वनि, अपनी मूल
हिंदी/उर्दू भाषा दुनिया भर में बताता फिरता है कि मूल हिंदी/उर्दू भाषा किस को कहते हैं। बस ऐसे ही अनोखे अनोखे पहलुओं को सराहना करते करते हमें ज़िन्दगी को बितानी
है।
4.29
सांय, 01-04-2022 गूगल ट्रांस्लेट के सहाय
से अंग्रेजी से अनुवाद करने की भारीभरकम कोशिश
Click on this link for the original: discrete-philosophy
मेरे और ब्लोग्ज़ पर भी तशरीफ़ फरमाइये! :-
Actually apna past sabko achha lgata hai bhale hi kitna dukh bhara kyon. N ho.hame to lagta hai ki angrejo aur mugalo ke time me publick ko
जवाब देंहटाएंkhane ke prabandh ke alawa dusra kuch sochane ka Samay hi nahi milta tha. Ye baat to sach hai ki every one is alone.