कब्र में भी चर्चिल की आत्मा बेचैन होगी...!
पहले ईस्ट इंडिया कंपनी पर
भारतीय मूल का कब्जा और अब पीएम की कुर्सी पर भी बैठा भारतवंशी
विजय दर्दा (चेयरमेन, एडिटोरियल बोर्ड, लोकमत समूह) 31st
October 2022
मेरी टिप्पणी: ऋषि सुनक का विलायत का प्रधान मंत्री पद पर स्थापन्न होना इसे मैकाले की दृढ़ता का प्रतीक कहा जा सकता है। इसे मैकाले से बोया गया बीज का आगे चल कर एक सर्वोच्च पद की हद तक पहुँना, ऐसी यहां पर बात हुई है. जिस पद पर विंस्टन चर्चिल जो दो बार स्थापन्न हुए थें, जिस पद पर बैठने के लिए जहां विंस्टन चर्चिल उपयुक्त ठहरे थे, आज उसी पद के लिए उपयुक्त ठहरे हैं ऋषि सुनक!
इसके विपरीत, अगर सर विंस्टन
चर्चिल जैसे लोगों के ऊपर कोई और भाषा का प्रभुत्व पेश आता, उन के द्विपनुमा देश
में औरों के ज़रिए नये गांव बनते, शहर बनते, सड़कें बनती, और इन सभी को उस दूरदराज़ देश में औरों के खुदकी
ज़बान व संस्क्रुती की सुविधा के नाम दिए जाते तो फिर समझ लीजिए कि वक़्त 'के
पन्नों ने क्या पलटी मारी है' यह सब कहना मुनासीब होता. अभी तो खैर यह कहिए की फिलहान के मुश्किल वक़्त
में बीते हुए सामराज्य में से निकला हुआ एक फलस्वरूप ऋषि सुनक काम में तो आया!
इस साल का आज़ादी का अमृत
महोत्सव भी क्या दरसाता है? यह दरसाता है कि
इतने सालों तक भी हमने अंग्रेज ने दी हुई पकड़ को ढीली नही होने दी है!
क्या हम अंग्रेज के दिया हुआ राज्य नहीं चला सकते थे?
यहां पर हम गर्व के साथ कहतें हैं कि हमने सर विंस्टन चर्चिल को गलत साबीत
किया है. हम ने अंग्रेजों से अच्छा पाठ सीखा है! आज्ञाकार शिश्यों के तौर पर हम
सारी दुनिया को पछाड़ कर सकते हैं.
00.02 08-11-2022
यहां पर सर मैकेले के शब्दों को दोहराना ज़रूरी है....
2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में लॉर्ड मैकाले का अभिभाषण....
1833 में, जब कंपनी के शासन को चुनौती नहीं दी जा सकती थी, मैकाले ने संसद में पूछा था कि भारत का दूर का भविष्य क्या हो सकता है। उनके प्रश्नों और उनके उत्तरों ने आज जो यथास्थिति है, उसके लिए अंतिम शब्द उपलब्ध कराए।
उन्होंने पूछा था, 'क्या हमें भारत के लोगों को अज्ञानी रखना चाहिए ताकि
हम उन्हें विनम्र बना सकें?'
'या हम सोचते हैं कि हम महत्वाकांक्षा जगाए बिना उन्हें
ज्ञान दे सकते हैं?
'हमारे भारतीय साम्राज्य की नियति घोर अन्धकार से ढकी हुई
है...हो सकता है कि भारत का जनमानस हमारी व्यवस्था में तब तक फैल जाए जब तक कि वह उस व्यवस्था को अपना समझ सकते हैं ; कि, अच्छी सरकार द्वारा हम बेहतर सरकार की क्षमता के लिए लोगों को शिक्षित कर सकते हैं; कि, यूरोपीय ज्ञान में प्रशिक्षित होने के बाद, वे भविष्य में यूरोपीय संस्थानों की मांग कर सकते हैं।
'क्या ऐसा दिन कभी आएगा, मुझे नहीं पता। लेकिन मैं इसे टालने या मंद करने का प्रयास कभी नहीं करूंगा। यह जब भी आएगा, अंग्रेजी इतिहास का सबसे गौरवपूर्ण दिन होगा। एक समक्ष लोगों को गुलामी और अंधविश्वास की सबसे निचली गहराई में डूबे हुए पाया जाना, उन पर इस तरह शासन करना कि उन्हें नागरिकों के सभी विशेषाधिकारों के लिए इच्छुक और सक्षम बनाया जाए, यह वास्तव में हम सभी के गौरव की उपाधि होगी।
लाल किले
में विद्रोह, जेम्स लीज़र, 1959
और....
2 फरवरी, 1835 को, ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस बाबिंगटन मैकाले
ने अपना 'मिनट ऑन इंडियन एजुकेशन' दिया, जिसमें अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारतीय
'मूल निवासियों' की आवश्यकता को स्थापित करने
की मांग की गई थी। प्रसिद्ध लॉर्ड मैकाले के मिनट ने विवाद को आंग्लवादियों के पक्ष
में सुलझा दिया - सीमित सरकारी संसाधनों को केवल अंग्रेजी में पश्चिमी विज्ञान और साहित्य
के शिक्षण के लिए समर्पित किया जाना था। लॉर्ड मैकाले का मानना था कि "भारतीय
शिक्षा यूरोपीय शिक्षा से हीन थी," जो उस समय भौतिक और सामाजिक
विज्ञान के संदर्भ में सही थी।
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