शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

औरों की अमानत अपनी समझना

 सारा संपादकीय पढ़ने के लिए:  Samachar_20230404

भारतीय भाषाओं के प्रति नजरिया बदलना जरुरी

"राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भारतीय भाषाओं में सभी स्तरों पर शिक्षा प्रदान करने की पुरजोर वकालत की है"

"अंग्रेजी में शिक्षा हासिल करके ही बच्चे का भविष्य उज्ज्वल बन सकता है. यह धारणा इतनी गहराई तक जड़ जमा चुकी है कि न केवल शिक्षा के स्तर पर बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी भारतीय भाषाएं पिछड़ती चली गई हैं!"


मेरी टिप्पणी जहां तक कि हम यह बात स्वीकार न करें की भारत, यांनी कि इंडिया, अंग्रेजो की अमानत थी तब तक तो कोनो चांस नहीं कि खुद की चीज़ें अपनाने के लिए अभिभावकों से लेकर राजनीतिक नेतृत्व तक के भीतर इच्छाशक्ति मजबूत हो.

  जहां तक कि वे यहां थे, उनकी सारी चीज़ें उनकी ही ठहरी थी.  उनके बनाये हुए रास्ते, रेल, रेल स्टेशनें, इमारतें, कायदे कानून, राज करने का तरिक्का और खास तो उनकी भाषा उनकी ही ठरही थी.  उनके सामने हम अपनी चिज़ें को नज़र अंदाज़ न कर पाये जैसे कि आज हम कर रहें हैं.  मुन्शी प्रेमचंद चाहे कितना ही अंग्रेजी साहित्य पसंद करते थे, अपने उर्दू हिंदी के साहित्यिक घर को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जितना कि पराई चीज़ें सरहानीय हो सकती है इतनी ही अपनी भी चीज़ें सरहानीय हो सकती है, यह उनका विचार रहा होंगा.

  फिर अंग्रेज को तो अपनी अमानत को छोड़नी हुई.  काफी अफसोस के साथ.  उनके हिसाब से ये कोन आ गए  अपनी मन मुरादों की चिज़ें को लूटने!  और यह एक तरह से लूट ही रही.  हम ने यह सारी चीज़ें अपनी ही अमानत समझ ली. कोई कृतज्ञा का दखल किये बगैर.   रास्ते, रेल, रेल स्टेशनें, इमारतें, कायदे कानून, राज करने का तरिक्का और खास तो उनकी भाषा अंग्रेजी को तो बूरी तरह से अपना लिया.   अंग्रज की अमानत भारत - को चलाने के लिए अंग्रजी भाषां की तो अहम भूमिका रही है. और होते होते अभी अभी हमने अंग्रेजों से आज़ादी का अमृत महोत्सव भी मना लिया.  यानि कि अंग्रेजों को हटाने का जशन,  उन ही की ज़बान इस्तेमाल करते हुए! उनकी अंग्रजी भाषा और उनकी और सारी चीज़ों पर  तो जाने हमारा जन्मसिद्ध अधिकार जमा है, पहले से ही!

अंग्रेजी भाषा तो आखिरकार देश की मूल भाषा बनी हुई है.  जैसे कि लेख में लिखा गया है -  अंग्रेजी का आभामंडल इतना व्यापक बना दिया गया है कि सभी तबकों के लोग अपने बच्चों को अंगेजी माध्यम में ही शिक्षा दिलवाने को प्राथमिकता देते हैं.  और मुसिबत यह है कि भारत एक लोकतंत्र है. (वह भी एक अंग्रेज की ही देन ठरही.) जहां लोगों की भीड़ जमी वहां से देश का आगे बड़ना होगा!

 यह बात सही है कि अंग्रेजी का वर्चस्व विश्व के उन क्षेत्रों में ज्यादा है जहां अभी अंग्रेजों का शासन हुआ करता था.  लेकिन इन में से ढेर सारे में तो अपनी कोई ढंग की भाषा भी न होने की वजह रही है.   इन कई देशों आजाद होते हुए भी इंग्लेंड के राजा/राणी को देश का प्रमुख मानते हैं.  वे अंग्रेज के प्रति कृतज्ञता रखना चाहते हैं.  हम भी अंग्रेजी भाषा में लिपटे हुए हैं  लेकीन अगर कृतज्ञता हमारे खुन में होता तो फिर सीने तान कर हम भारतीय बन सकते थे क्या? हमारे नोटों पर गांधीजी का फोटो है,  राजा-राणी के नहीं! एक अच्छा सा सवाल है, यहां पर खुद गांधीजी का क्या ख़याल होता?  हम उनको कहते कि अंग्रेजों की तो हम सारी चीज़े इस्तेमाल कर रहें हैं.  बस आपने जो अंग्रेजों को हटाया वह जबरदस्त काम किया. और  हमारा भी करामत देखिये!  हमने तो अंग्रजी भाषा इतनी अपना ली है कि इन में बैठे हुए अंग्रेजी नाम, शहरों, कसबों के अंग्रेजी नाम हटवा कर हमारे अपने लगवा दिये हैं!  

एक बात तय है कि हम अंग्रेजों ने बनाया हुआ घर में रहतें हैं. लेकिन यह भी तय है कि हम इस बात को स्वीकार कतई नहीं करना चाहेंगे.  इस के ऊपर हमारी ठोस अस्वीकृती को दर्शाने के लिए शहरों, रेल्वे श्टेशनों, के अंग्रेजी नाम बदल कर हमने अपने सीने को चौडा करना चाहा है.  यहां पर बात जो हम समझना नहीं पसंद करते है वह यह है कि दुनिया में विविधता एक अहम भूमिका अदा करती है. कौनसी भाषा में कोन सा शब्द अच्छा बैठता है. पर यह एक अध्यात्मीक बात ठहरी.  देव आज्ञा ठहरी.  लेकिन भौतिकतावाले लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है.  न तो खुद के लिए हम अच्छे बन सकते हैं न तो औरों के लिए.

 हमारी आज़ादी की बुनियाद अंग्रेजों से नफरत करने पर काइम है. हालांकि वे इतने ही ख़ुदा के बंदे हैं जैसे कि कोई जरमन, कोई रूसे, कोई मराठी, कोई पंजाबी.  लेकिन हमने कड़ोड़ो रूपियों की लागत से स्टेट्यु ऑफ युनिटी उठ खड़ा किया है.  कारण सिर्फ यह कि हम मराठी, पंजाबी, वगैरे एक होके अंग्रेजों जैसी आफतों से दूर रह पाये और  सिर्फ एक भारतीय बन कर दुनिया का कस कर मुकाबला करें.   

एकता और अखंडता में जखड़े भारतीयों को यह जानना निहायत ही जरूरी है कि आज़ादी का मतलब है कण कण में आज़ादी. अगर कण कण को कीमत देंगे तो फीर कण कण की भाषाओं की भी कीमत बढ़ेगी और सरदार पटेल के पुतले के तले कुचल जाने से बच पायेगी.

12.57, 07-04-2023  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें