मंगलवार, 2 अप्रैल 2024

एक गणतंत्र लेकिन एक साम्राज्य भी

गुजराती  Quora पर हुई गुफ्तगू


यदि यूरोपियन भारत न आये होते तो आज भारत कैसा होता?

"यदि यूरोपियन भारत नहीं आये होते तो भारत का स्वतंत्र देश बनना कठिन था क्योंकि जितने राज्य थे उतने ही रियासत थे और यदि सभी रियासत शक्तिशाली होते तो अब तक अलग-अलग देश बन चुके होतेलेकिन अंग्रेज़ों ने कहीं-कहीं रियासतों से लड़कर उन्हें पराजित करने के बाद या कहीं मित्रता बनायी और हर रियासत की ताकत को कम कर करके  एक बड़े ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना कीजिसके कारण जब भारत स्वतंत्र हुआ तभी सरदार पटेल के  नेतृत्व में  ये सभी रियासतें एक एक करके  कम समय में भारत में  विलय करना संभव हो पाया। और इस प्रकार भारत राजाओं के शासन से मुक्त होकर एक सही मायने में एक सच्चा गणतंत्र बन गया।

ब्रिटिश शासन के अन्य लाभ इस प्रकार हैं

तारडाकस्कूलकॉलेज आम जनता के लिए उपलब्ध हो गये।

भारत में पेट्रोल कारों और रेलवे का युग शुरू हुआ।

एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा का अधिग्रहण हुआ जिसके कारण विश्व के अन्य देशों के साथ संचार संभव हो सका।

उस समय के हमारे कई नेता बैरिस्टर की डिग्री का अध्ययन करने और उसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड आये थे। इसलिए वे अंग्रेजों से लड़ रहे थे। डॉ। अम्बेडकर ने इसी ज्ञान के आधार पर भारत का संविधान भी लिखा।

मुंबईदिल्लीचेन्नईकलकत्तागोवा और शिमला जैसे सीटीओ का प्रारंभिक विकास भी उन्हीं (अंग्रेजों) की देन है।

मुंबई के फिल्म उद्योग की शुरुआत उस समय उनके (विदेशियों) द्वारा आविष्कार किए गए वीडियो कैमरे से संभव हुई।"


मेरी टिप्पणी- भारत न होता, शायद हिंदूस्तान होता.  सवाल यह है कि क्या आज जो है वह सही है? यानी भारत जो अखंड गणतंत्र बन गया है वह अच्छी बात है क्या?  क्या आजकल एक गणतंत्र का होना और साथ में एक साम्राज्य का होना ​​उचित है?

क्या किसी को यह ख्याल नहीं आया कि हम ने अंग्रेजों की पकड़ में शामिल हो कर उसी पकड़ को मजबूत करने का प्रयास करके कुछ गलत तो नहीं कर रहे थे, या कर रहे हैं?  जाना होता था विपरीत दिशा में पर गए, ब्रिटिश साम्राज्य की दिशा में और इतना ही नहीं,  बल्कि जहां-जहां अंग्रेज कमजोर थे, वहां-वहां मजबूत स्थिति लाकर  साम्राज्य को और भी मज़बूत बनाया और  अपने इरादे को दुनिया के सामने रखने में हमें कोई संकोच नहीं हुआ ।  हालाँकि, यह मनुष्य की अपनी अपनी राय है। भारतीयों जिस तरह "स्टैच्यू ऑफ यूनिटी" को देखने के लिए भीड़ लगाते हैं,  किसी को इस मामले में कुछ गलत लगता हो ऐसा दूर दूर तक नज़र नहीं आता।

इस के लिए एक कारण है। "भारत माता की जय" एक कारण है। हम अंग्रेजों की बनाई नींव पर खड़े हैं और 1000 साल पहले के भारत की ओर घूर कर देख रहे हैं. हम उस पुराने भारत के सेवक बनना चाहते हैं। सोचिए, जब भारतीय संस्कृति को हटाकर अन्य संस्कृतियों को पूरे देश में फैलाया गया हो तो यह उसके लिए कितना गलत रहा होगा? इस बात के  ऊपर घोर देना अभी लगातार चालू है।

संस्कृत सभ्यता को अवश्य ही ठेस पहुँची होगी, उसी तर्ज पर सोचते हुए हमने, वर्तमान में, बाद में आई सभ्यताओं के चिन्हों को निरस्त करने का विकल्प चुना है। बॉम्बे, बॉम्बे वीटी, मद्रास, कलकत्ता, मुगरसराय, औरंगाबाद ने इन अच्छे नामों का खो देने को नुकसान उठाया है क्योंकि हमें 1000 साल पुरानी सभ्यता से किसी तरह समझौता करना होगा। ऐसी हमारी समझ हो बैठी है। यहां पर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर यह बात सामने आती है कि वसुदेवकुटुंबकम यह एक हिंदू धर्म का तथ्य  कितना  झूठा समझा जाए?

 हम तो सिर्फ गुलामी में जीना चाहते हैं. अंग्रेजों की बनीबनाई बुनियाद पर खड़े होकर जोर जोर से चिल्लाना है – भारत माता की जय!” । यह एक गुलामी के तले होकर दूसरी गुलामी की जय-जयकार करने की पेशकश हमने हाथ में संभाली हुई है। भारत देश के गुलामों के लिए यह समझना कठिन है कि इससे उनकी अपनी अपनी भाषाई सभ्यताओं का अनादर होता है । हर सभ्यता का अपना स्थान, अपनी विशेषताएं होती हैं। उसे अपने निशान, अपना अस्तित्व पेश करने का अधिकार होना चाहिए। चाहे गुजराती हो या मराठी, जर्मन हो या रूसी, हर किसी को पूरी तरह अस्तित्व में रहने का कार्मिक अधिकार है। मेरी महान भारत माता ने अनेक भाषाई सभ्यताओं को जन्म दिया है। इन सब को एक भारत माता की जय की पुकार ने पीछे कर दिया है.  भारत माता की जय का मतलब है कि सब कुछ धर्म के नाम पर है, इसलिए सब कुछ माफ है। लेकिन मुद्दा यह है कि धर्म और ईश्वर एक ही रास्ते पर नहीं चलते!

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अप्रत्याशित रूप से समझदार व्यक्ति प्रतीत होते हैं। उन्हें कई बार मातृभाषा के मुद्दे पर चिंता जताते हुए देखा गया है. लेकिन वे यह मानने को तैयार नहीं होंगे कि यह चिंता में ही जवाब  है क्योंकि उसके लिए भारत माता की जय का नारा बंद करना होगा जिससे उसमें उनकी सारी बातें खराब हो जाएंगी, हिंदू राष्ट्र की बात खराब हो जाएगी!

अंग्रेज अपने साम्राज्यवादी विचारों को छोड़कर उनके   छोटे से द्वीप पर लौट आए हैं, तो हमारे विचार उनके जैसे कब होंगे  ताकि भारत, हिंदुस्तान और इंडिया के साम्राज्य इतिहास के पन्नों में सिमट जाएं?  

दूसरी  बात यह है कि  विस्थापित सिंधी और पंजाबी अपने घर वापस जा सकेंगे, या नहीं? क्या किसी के मन में विचार आता है?

  ऐसा लगता है कि जब तक भारत माता की जय का नारा बजता रहेगा ऐसा कोई मन में विचार आना मुश्किल है।  अभी तो लोकतंत्र के नाम पर अत्याचार कायम है. इसमें तो हिंदू धर्म को भी शामिल कर दिया गया है. धर्म और ईश्वर एक दूसरे के विरोधाभासी हैं। इसलिए आशा  बनी रहेगी।

11:18 p.m. 01-04-2024

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