Life in Western Sahara
Haryanvi Voyager
मेरी टिप्पणीः आप की बात बिलकुल सही है कि जो देश की परेशानी रही है वह गोरे - अंग्रेज के बदौलत है. अगर वह नहीं होते तो इंडिया न होता. अंग्रेज न आते तो जिसको अंग्रेजी अगर आती तो भी बहुत कम लोगों को आती. चाईना के दौर में तो आप मारा मारा फिर रहें कि कहीं कि कोई अंग्रेजी बोलें. उनको शर्म नहीं इस बात की कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती. गांधी और जिन्ना के बीच झगड़ा होता तो भी सिर्फ अपनी भाषा – गुजराती - में ही होता. उससे कहीं सिंधी, कहीं पंजाबी, कहीं बिहारी का नहीं कोई हालबेहाल होता जो हुआ. सारी मुसीबत का श्रेय बाहर के लोगों को जाता है जिनों ने हमें झुठे, मक्कार, बेईमान बनाया जैसे कि श्री विस्टन चर्चिल ने बताया कि हम हैं. गोरों को सारी दुष्वारी का कारण बताते हुए, हम उन्ही ने बनाये हुए देश, और उनकी भाषा के नाम के ढोल पीट रहे हैं.
4:39 p.m. 13-09-2024; 12:30 p.m. 14-09-2024 to
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मेरी टिप्पणी 2 - आपने कहा कि वे लोग जब थे तभी तो सब बराबर था, सब मिलजूल कर रहते थें, देश एक सा ही था. थोड़ी गहराई डालेंगे तो पता चलेगा कि वे लोग तो खैर न्युट्रल अंपायर/तटस्थ अंपायर के जैसे थे। न्युट्रल अंपायर के आने के बाद क्रिकेट की दुनिया में टकराव का माहोल कम हुआ है. अगर अंग्रेज़ जोड़े रहते तो इंडिया वैसे कि वैसे रहता.
रही बात क्या होना चाहिए था उनके
जाने के बाद. इंग्लेंडवाले इंमानदारी से
अपने वतन लौट गये, इंडिया छोड़ कर. तो फिर हम
भी अपने अपने वतन इमांदारी से चले जातें! बस हम अपनी अपनी भाषाओं
का लिहाज करने में कम पड़े हैं. उपरवाले ने बनाई हुई भाषाओं का लिहाज़ करने से हम दूर
रहना पसंद किया, अपनी मनमानी की!
एक बात तो साफ है. यह बात नहीं है
कि हमारा उपरवाले से तालुकात खुब रहा हो क्योंकि हम तो यह उपवास करते हैं, यह खाते
है, वह नहीं खाते, गाय को तो हम पूजतें हैं, उसको खाने की तो बात ही दूर. इन सभी को
तो हम बुनियाद समझते हैं भारतवर्ष की. लेकिन हुआ क्या है? उपरवाले
ने उन्हीं को भेजा जो इन सारे से विपरीत थे और एक नहीं दो नहीं कुछ 1000 साल इनसे
हम पर राज करवाया. यह बताता है कि उपरवाला
तो कुछ और ही है, नहीं के जिन्हें हमने कैद कर रखा है मंदिरों में.
4:54 p.m. 15-09-2024
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