ऑक्सफोर्ड से तोता क्यों बोलता है...?
सर्द ब्रिटेन में काश्मीर को लेकर गर्मी क्यों? खुद की सुधर नहीं रही है हमारे घर में झांक रहे हैं... ?
स्वतंत्र विचारों के नाम पर भारत के खिलाफ षडयंत्र रचने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती.
मेरे प्यारे दुश्मनों...
हम तो अब आँख मे आँख डालकर देखेंगे.
डॉ. विजय दर्डा
मेरी टिप्पणी: "आंख में आंख डालकर देखेंगे" यानी कि 'बैल को सींगों से पकड़ना' जैसे की अंग्रेजी मे मुहावरा है, इस से तो यह विपरीत बात बनती है कि बहस से भागना। साजिशों से डरना, पाकिस्तान के भी किसी वक्ता को आमंत्रित करवाना भी एक साज़िश समझना, यह कोई बात नहीं बनती। इस का मतलब है कि आप दुनिया से डरते हैं और यह कहना कि आतंकवाद पर बहस होनी चाहिए, आप इस सरल तर्क से नासमझ हैं कि आतंकवाद की उत्पत्ति बहस की कमी में है। आप उन बहसों से कतराते हैं जिनमें आप हारने से डरते हैं। आप तो अड़े हुए हैं कि भारत की एकता और अखंडता के बारे में कोई बहस का विषय नहीं बन सकता, आतंक हो या न हो, 40 हजार से ज्यादा जानें चली जाय या न चली जाय. लाशों से भरी ट्रैन का आदान प्रदान हो या न हो, जैसे कि 1947 में हुआ, हमें भारत चाहिए, यानी कि चाहिए!
लेकिन आपको भारत किसने दिया? अंग्रेजों ने ही तो उसे रचाया है और दिलवाया है।
आपकी अपनी बलबुट्टी से कतई नहीं उसे पाया है। अंग्रेजों ने कहा कि सूनो सूनो, जो लोग अंग्रेजी जानते हैं कृपया अपने हाथ ऊपर
उठाएं और ले लो यह भारत! गांधी, नेहरू, अंबेडकर के हाथ खुशी खुशी उठे...! और उसी तरह से
ही तो नहीं क्या कहा जा सकता कि जो लोग कश्मीरी भाषा से तालुक रखते हैं वे अपने हाथ ऊपर उठाएं
और यह लो अपना कश्मीर?
अब लोकमान्य तिलक ने एक सिद्धांत प्रस्तुत किया कि
स्वतंत्रता हर एक का जन्मसिद्ध अधिकार है। क्या इसे बिंदु दर बिंदु अलग-अलग तरीके
से व्याख्या किया जाना चाहिए?
निश्चित रूप से, आज़ादी का मतलब सिर्फ़ शासन करने वालों की त्वचा
का रंग बदलना नहीं है। इसका मतलब उससे कहीं ज़्यादा है। और हम न सिर्फ़ लोगों को
बेवकूफ़ बना रहे हैं, बल्कि भगवान को भी बेवकूफ़ बनाने पर तुले हुए हैं।
5:44 p.m. 19-09-2024
मेरी टिप्पणी
- 2 - भगवान को यह बताते फिर रहे हैं कि फिलहाल तो इंग्रेजी भाषा का बोलबाला है, भारत में तो सही, सारी दुनिया में इस का राज है।
हम अपने बच्चे लोगों को इंग्रेजी स्कूल में भेजतें हैं. लेकिन इस का कारण यह नहीं स्वीकारेंगे कि, ऐसा है क्यों कि अंग्रेजों के बदौलत भारत हमारे हाथ
में आया है। हा, हम ‘प्रोमिस’ करते हैं आगे चलके, फुरसत मिलने पर, हम जरूर आप की भाषा – संस्कृत - सीखेंगे और अपनाएंगे।
जब तक हम संस्कृत सीखेंगे, अंग्रेजी भाषा ज़िंदाबाद ! जो कोई भी एक भाषा से
जुड़ा रहे भारत । भाड़ में जाए हमारी अपनी भाषाएँ ।
आप को तो कितनी परेशानी होती होगी नहीं? इतनी सारी भाषाएं, इसने सारे लोग, इतने सारे खानपान, हम पूरी कोशिश में हैं कि पूरा भारतवर्ष आप का सूने, आपकी भाषा बोले, आपने जो कहा खाए, आपको फिर से मानसमान मिले. भारत माता की जय ! इस पुकार में सब है सम्मिलित।
कश्मीर को तो हम कतई नहीं छोड़ सकते हैं क्यों
कि वह भी आपको खुश करने के दायरा में आता है। सारी दुनिया सारी चली जाय, कम से कम जो आपका अपना होना चाहिए, भारत, उसे हम हमारा करके रखेंगे, चाहे उसमें और 40 हजार लोग क्यों न मारे जाए, लोशों से लदी ट्रैन का
क्यों नहीं आदान प्रदान हो । यही तो हम
अपनी जिंदगी का अहम मकसद समझते हैं। उससे
खोया हुआ वतन, खोयी हुई भाषा से कोई मतलब नहीं । यह सब तो गौण है आप के सामने । आप तो कुछ हट के
हैं, हट के ही रहे ऐसी है हमारी गहरी तमन्ना है। आपकी खातीरदारी में बड़े मंदिरों हो रही है,
यह तो आपने देखा ही होगा । लेकिन ख़बरदार! आप कहीं मंदिर छोड़ कर के
कहीं ओर न चले जाएं! और लोगों की ओर न झाकें !
कहीं आप कुछ और न सोचने लगें !
धर्म आखिर में धर्म होता है, चाहे कोई आदमी का ही उत्पती क्यों न हो। कोई भी ग्रंथ हो, आखिर में लिखने वाला तो आदमी ही है। हम अपने, आदमी रूपी पुर्वजों द्वारा, बनाई हुई नैतिकता पर, प्रचलीत में आए हुए विचार पर, कायम रहेंगे चाहे कुछ भी हो जाए। आज के आदमी चाहे कुछ भी सोचे, आज के हालात चाहे कुछ भी कहे ।
12:41 दोपहर 20-09-2024
और भाषाओं में......
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