सोमवार, 18 नवंबर 2024

मुकेश अंबानी की अकूत दौलत

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लाइफ स्टाइल

अंबानियों के पास पैसा कहां से आता है, भाग्य या धर्मकर्म से?

अंदाजा है कि इस शाही शादी पर कोई 5 हजार करोड़ रूपए खर्च किए गए जो मुकेश अंबानी की अकूत  दौलत का एक फीसदी हिस्सा भी नहीं है.

 भारत भूषण श्रीवास्तव  / जुलाई १७, २०२४


मेरी टिप्पणीः आपका लिखा हुआ सबकुछ ऊपर कहीं बैठा भागवान और नीचे बैठे उस के एजेंट करते है जो धर्मग्रंथों के जरिए यह साबित करते रहते हैं कि तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह ईश्वर की कृपा है और अगर कुछ नहीं है तो वह ऊपर वाले की नाराजगी है जिसे दूर करने के लिए हमें पैसे देते रहो.

गरीबों का मजाक.  देश में करोड़ो लोग गरीब हैं. इन करोड़ो लोग के पूर्वज पापी थे?”

इन सारे पहलु से बोद्धपात्र यह है कि दुनिया ढेर सारी परिस्थितियां से भरी पड़ी है.  इन परिस्थितियां में कोई है अमीर तो कोई गरीब, और उसमें भी कोई अकूत दौलत के पात्र होते हैं जैसे कि हम सब ने मुकेश अंबानी से अनुभव करते हैं. यहां निहायत ही ज़रूरी चीज़ यह कि हम यह सारी भिन्नता को स्वीकारें.  आखिर में यह सारी बात ऊपरवाले की ही तो लीला है!

सारी की सारे ऊपरवाले की अमानत है, यह समझना ज़रूरी है. उन्ही की बनाई हुई सोची समझी तस्वीर है!  हम सब उसमें बैठे हुए कठपुतलियां है, चाहे अंबानी या तो कोई सड़कछाप आदमी.  हर एक को अपने अपने ढांचे मुकद्दर है. उस पर कुछ ज़्यादा ही आक्रोश जताना सीधा ऊपरवाले से आक्रोश जताना है।  पर ऊपरवाले से अनबन रखने से ही तो  नीचे बैठे एजेंटों के आमदनी का जरिया बनता है, उनके ढांचे को भी मुबारक हो.

हम जब रोजमर्रा जिंदगी में रास्ते पर का ट्रैफ़िक देखते हैं तो लगता है कि हर कोई अपने तईं सुखी है, रास्ते तय करने में मशगुल हैं. चाहे कोई हिंदू या मुसलमान, गरीब या अमीर, कोई सायकल पर या तो कोई आलेशान कार में, सब की हालात तय है, कोई किसी को शिकायत का मौका नहीं. ट्रैफिक रुक जाने पर ही मेरी कमीज उसकी कमीज से सफैद कैसी वाली बात बनती है. और इसी रुकी हुई यातायात से बनती उलझनों से मिलता है धर्मगुरुओं यानी कि एजेंटों को धर्मग्रंथों का जिक्र करने का मौका.  यहां अगर हम  धर्मग्रंथो की बात करें तो वे हैं पुरातन काल के विद्वानों द्वारा उनके मौजुदा स्थानीय हालात का आनंद उठाते हुए लिखें हुए हैं.  इस पर भी ध्यान देना ज़रूरी!

अगर हम अपनी अपनी हालात से सुख समाधानी रहना चाहते तो जाति आधारित आरक्षण वाली पैचिदी बात उभर कर नहीं आती.  अगर हालात को अपनी मर्जी से बदलने पर गौर न करते तो न तो भारत या तो पाकिस्तान बनता न की लहू की नदीयां बहती.   हम अपनी अपनी ज़बान,  देवरूपी भाषाओं से ही मुतमैन रहते नहीं कि औरों की भाषाओं को हावी होने देते और साथ साथ कहते कि इसी को भारत की एक संकल्पना समझें और सदा गुलामी का माहोल अखतियार करते रहें!  यानी कि औरों तले गुलामी से बेहतर खुद ही खुशी खुशी गुलाम बन कर बैठना  बेहतर‌ !

 यातायात के कानून अंग्रेजों ने बनाया था.  यातायात ठीक से चल रहा था.  सब अपनी अपनी जगह पर थे. स्वतंत्रता सेनानी ने यातायात को रुकवा दिया और अपनी अपनी सोच पेश  कर दी. नतीजे में यह समझों  कि  सारे रुकावट खतरनाक साबित होतें हैं जो निसर्ग को दाद देना नहीं चाहते.

वास्तव में निसर्ग, यानीकि भगवान, और इंसान के बीच धर्मगुरों को, एजेंटों को स्थान दिया गया है.  लोगों की इच्छापूर्ती करने के नाम केलिए ही तो वे लोग है. भारत नाम की इच्छापूर्ती के पीछे उन्ही का पूरा आशिर्वाद है.  कहे कि आप आगे बढ़ते रहो, हम भगवान को पूजापाठ करके पटाते रहेंगे.  दुनिया भर के धर्मगुरूएं इसी काम में लगे हुए हैं.  येहूदियों को भी अपने धर्मगुरुओं का साथ है, और साथ साथ मुसलमान पेलेस्टिनी भी अपने धर्मगुरुओं की बनाई हुई ढ़ाल के पीछे अपने आप को महफूज़ समझते हैं.

पटाने वाली बात तो एक जबरदस्त माध्यम हैं लोकतंत्र का.  कोन किसको किसको पटा सकता है. पाटाते पटाते फिरते रहो, और अपने राजनैतिक जीवन बनाते रहो.  और जैसे राज्यनेता वैसी प्रजा.  कुल मिलाकर बनता है भारत.

  10:32 p.m., 18-11-2024 

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