‘चुनाव से पहले औरंगजेब की कब्र का मुद्दा उठा’
मोहम्मद अखेफ (Mohammed.Akhef@timesofindia.com)
छत्रपति संभाजीनगर: मराठा आरक्षण कार्यकर्ता
मनोज जरांगे ने शनिवार को कहा कि अगर राजनेता चाहें तो मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र
हटा दें। उन्होंने राजनीतिक दलों पर स्थानीय चुनावों से पहले चुनावी लाभ के लिए इस
मुद्दे को हवा देने का आरोप भी लगाया।
जरांगे ने कहा, “अगर आप इसे हटाना चाहते हैं, तो हटा दें। इस बारे में बेवजह बात क्यों करें? मीडिया ट्रायल की कोई जरूरत नहीं है।”
उनकी यह टिप्पणी महाराष्ट्र में समाजवादी
पार्टी के विधायक अबू असीम अजीम द्वारा औरंगजेब की “अच्छे प्रशासक” के रूप में प्रशंसा करने के बाद बढ़ती राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के बीच आई है, जिसके कारण उन्हें चल रहे विधानसभा सत्र से निलंबित कर दिया गया। बाद में उन्होंने
अपना बयान वापस ले लिया।
इस मामले पर बोलते हुए, जरांगे ने कहा, “40 साल तक कोई भी कब्र नहीं हटा सका। अब, निकाय चुनावों से ठीक पहले, इस तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं। बड़े नेताओं ने इस बारे में बात की है। मैं
और क्या कह सकता हूं? स्थानीय मुसलमानों का औरंगजेब की कब्र से क्या लेना-देना है? क्या वह उनसे संबंधित था?” राजनीतिक दलों, खासकर भाजपा ने मकबरे को ध्वस्त करने
की अपनी मांग को तेज कर दिया है। इस मुद्दे ने एक तीव्र विभाजन को जन्म दिया है, जिसमें विरोधी दलों ने महायुति सरकार पर वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए
इतिहास का उपयोग करने का आरोप लगाया है।
मेरी टिप्पणी: इतिहास पवित्र है। यह
औरंगजेब या संभाजी महाराज सहित सभी से परे है।
भाजपा मूल रूप से देवताओं के सामने
अपना सिर झुकाने के लिए जानी जाती है। वे ऐसा इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए करते
हैं कि सब की पहुँच से परे एक शक्ति है। यह बहुत सीधी सी बात है, लेकिन फिर भी वे औरंगज़ेब को इतिहास के पन्नों में जो कुछ हुआ उसके लिए पूरी तरह उत्तरदायी क्यों मानते हैं, जबकि ऐसा करने वाला, परिणामों को आकार देने वाला और कोई
नहीं बल्कि हमसब की पहुँच से परे एक शक्ति है। शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, औरंगज़ेब लगभग 300 साल पहले के समकालीन थे, जिन्होंने पहुँच से परे शक्ति के लिए
अपनी निर्धारित भूमिकाएँ निभाईं और खुद को इतिहास के लिए प्रतिबद्ध किया। अब इतिहास
के कुछ पहलुओं के खिलाफ़ बेचैनी दिखाना तो उन हाथों के खिलाफ़
बेचैनी दिखाना है, जिनके हाथ में असली नियंत्रण तंत्र हैं, जिनके सामने हर भाजपाई अपना सिर झुकाता
है। यहाँ औरंगज़ेब पर घृणा फैलाना, इतिहास, ईश्वर द्वारा बनाए गए इतिहास, पर घृणा फैलाना है.
यह समझना योग्य है कि आज औरंगज़ेब की
राख, 300 साल पुरानी राख, उसकी कब्र में आराम फरमा रही है, उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं
है कि उसके नाम पर क्या हंगामा हो रहा है। मनोज जारंगे बिल्कुल सही कह रहे हैं कि इतना शोर क्यों? और आगे कहते हैं, क्या स्थानीय मुसलमान उससे संबंधित थे, कि अगर कब्र को तोड़ा जाता है तो वे परेशान होंगे?
हाँ, शायद वे परेशान होंगे! इस वजह से ही
तो यह सब रोमांचक हो जाता है। स्थानीय मुसलमान उससे इतिहास से जुड़े हुए हैं, और जाहिर है कि वे उसका महिमामंडन करने और कब्र को तोड़े जाने पर परेशान होने से
नहीं बच सकते। स्थानीय हिंदू भी इतिहास के मामले में उनसे जुड़े हैं, लेकिन वे इसके विपरीत चाहते होंगे। इसी का राजनीतिक लाभ लिया जा रहा है या तो
कहिए कि इस बात का लाभ को ले के शोषण किया जा रहा है।
इस शोषण में सबसे बड़ा नुकसान “औरंगाबाद” का खोने का है। इससे बहुत से लोगों, हिंदू और मुस्लिम दोनों को अपने जन्म स्थान का नाम खोना
पड़ रहा है। यह उनकी ओर से सबसे बड़ा बलिदान है, और यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि वर्तमान
में प्रभारी लोग इतिहास को अपने हिसाब से सही
करना चाहते हैं, इसलिए कि इतिहास का श्रेय जिसकिस को देना है उसको अपना मनचाहा रूप देना चाहते
हैं.
यह वास्तव में बलिदान है क्योंकि औरंगाबाद
कोई बुरा नाम नहीं है, बल्कि एक जबरदस्त नाम है। लेकिन फिर बॉम्बे, पूना, कलकत्ता, इलाहाबाद, मद्रास, वगैरे, वे सभी भी कोई बुरे नाम नहीं थे। वे उस समग्र, विश्वव्यापी छत्रछाया के अंतर्गत आते हैं, जिस पर परे की शक्ति का नियंत्रण है, जिसके अंतर्गत सभी प्रकार के लोग और
उनके विभिन्न रीति-रिवाज शामिल है। जैसा कि उल्लेख किया गया है, इतिहास का हर पहलू एक ही आदेश के अंतर्गत आता है।
अगर हमें उस छत्र, ईश्वर के छत्र, के नीचे रहने में कोई दिक्कत नहीं होती तो ये सभी
निष्कासन गतिविधियाँ शायद बच जातीं और इस दुनिया के पास हर जगह जहर उगलने का कोई कारण
नहीं होता।
लेकिन भारत और उसके ब्रिटिश द्वारा
पेश किए गए लोकतंत्र का मतलब वास्तव में इस छत्र को छीनकर लोकतंत्र में काम में
आने वाले देवताओं को सौंपना है जो कि है जनता को। जनता ही जो है कि राजकरताओं को चुनवाती है और उनको अपने पक्षमें कर लेने में
ही लोकतंत्र मे एक बड़ी उपलब्धी मिलती है।
भाजप ने अपने विचारों से बहुसंख्य जनता का मन इतना जीत लिया है कि अब सबसे कटु
विपक्ष के पास भी कोई विकल्प नहीं है कि सिवा उसी विचरधारा को अपनाना.
समाजवादी पार्टी के विधायक अबू असीम
अजीम द्वारा औरंगजेब की “अच्छे प्रशासक” के रूप में प्रशंसा करने के बाद महाराष्ट्र में बढ़ती राजनीतिक प्रतिक्रियाएं यह
सब कुछ बयां कर देती हैं। यह तो उनकी बहादुरी थी कि ऐसा कुछ बोले। लेकिन फिर, जैसा कि उल्लेख किया गया है, ‘बाद में उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया।’ आखिरकार उन्होंने भी भाजप ने बनेबनाए राहों पर चलना पड़ा। हालांकि, उन्होंने अपने पीछे प्रभाव छोड़ा, दुनिया भर के लिए, कि बात कितनी बिगड़ी हुई है।
क्या औरंगज़ेब एक अच्छे प्रशासक नहीं
थे? बेशक, थे! लगभग पचास साल का शासन और उनके प्रशासन के तहत अतुलनीय विस्तृत क्षेत्र
उनकी सक्षसमता को पूरी तरह से दर्शाता है। उनके पास अपने जीवन में यह सब था। उनका
यह एक पात्र था। कहिए कि यह सब उनके जीवन
में लिखा हुआ था।
लेकिन आज, इसी वक़्त उनके जीवन के किसी
भी पहेलु के बारे में जिक्र करना सबसे शर्मनाक
अपराध माना जा रहा है, और नही तो और, ऐसा करने पर जेल की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है, जैसा कि सीएम फडनवीस ने कहा है। औरंगज़ेब की प्रशंसा पर प्रतिक्रिया जो हुई दर्शाती
है कि भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबला कितना एकतरफा हो गया है।
प्रकृति जिस बहु-राष्ट्र सिद्धांत पर
जोर देती है, उसकी तो बात ही छोड़िए, द्वि-राष्ट्र सिद्धांत भी निरर्थक बना पड़ा है। इस अखंड और एकीकृत भारत में केवल
एकल-राष्ट्र सिद्धांत की ही अनुमति है।
यह भाजपा द्वारा की गई एक उल्लेखनीय
उपलब्धि है, जबकि वह एक ऐसे धर्म की प्रभारी है जो 33 करोड़ देवताओं यानी कि 33 करोड़ दृष्टिकोणों का दावा करता है। उन सभी को समझीए
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, वल्लभभाई पटेल की एकता की प्रतिमा, के पैरों तले कुचल दिया जाना है जो वास्तव में बहुत बड़ी बात है!
भारत, हिंदुस्तान, इंडिया के सभी अतीत के साम्राज्यवादी
समर्थक, अंतर्निहित विविधता की सभी बाधाओं के खिलाफ शायद कभी इतनी
एकता नहीं जुटा पाए, जितनी आज के शासक वर्ग ने जुटाई है।
प्रश्न यह है कि क्या यह वास्तव में
एक अद्भुत बात है? एक योग्य बात है?
हिंदी मे अनुवाद, 2.52 दोपहर, 16
मार्च, 2025
Recommended :
Lokmat Times_20250312